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मन्दिर
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सत्संगति क्यों? तो विचार भी किया। हाँ, पृथ्वी सबसे बड़ी है लेकिन एक देव उससे सहमत नहीं हुआ | वह कहने लगा- यदि भी नही तो रस १६१ ओ कि माता के रिसर में टिकी है? जो इतनी बड़ी पृथ्वी का वजन सहन कर रहा है तो वह उससे बड़ा है। सबकी अक्ल में आयो और कहा- हाँ, शेषनाग जी सबसे बड़े हैं । सय कहने लगे-हाँ भाई! शेषनाग जी सबसे बड़े हैं।
लेकिन एक देव कहने लगा कि जब शेषनाग जी बड़े हैं तो वह शंकर जी के गले में क्यों पड़े हैं? तो सबकी अक्रन में आयी की शंकर जी सबसे बड़े होने चाहिए। तो सब कहने लगे कि शंकर जी सबसे बड़े हैं । एक देव कहने लगा- यदि शंकर जी सबसे बड़े हैं तो वह कैलाश पर्वत पर क्यों पड़े हैं? तो सभी कहने लगे कि हाँ भाई कैलाश पर्वत सबसे बड़ा है। तो एक देव कहने लगा- कि कैलाश पर्वत सबसे बड़ा है तो यह हनुमान जी के हाथों में क्यों उठा है? तब सबने कहने लगे कि हनुमान जी सबसे बड़े हैं। फिर एक देव कहने लगा- कि हनुमान जी सबसे बड़े हैं तो रामचन्द्र जी के चरणों में क्यों पड़े हैं? तो फिर सभी कहने लगा- कि सबसे वड़े रामचन्द्र जी बड़े हैं, रामचन्द्र जी बड़े हैं। तो एक देव कहने लगा कि रामचन्द्र जी बड़े हैं तो वह गुरु वशिष्ठ के चरणों में क्यों पड़े हैं? तो सबको मालूम हुआ कि गुरु का स्थान सबसे बड़ा है।
"हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं और।" एक बार आप भगवान को मानने से इन्कार कर दोगे, भगवान को गाली दे आओगे तो कोई बात नहीं है | गुरु रूठे नहीं ठौर | यदि गुरु सं रूठ गये तो संसार में कोई ठौर नहीं है। गुरु एक ऐसा सलाहकार है जो आपको रूठे हुये से मैत्री करा देगा, किसी न किसी प्रकार से आपको रूठे परमात्मा से मिला ही देगा। इसलिए
"गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पाँय ।
बलिहारी उन गुरुन की, गोविन्द दियो बताए। गुरु वह है जो आप परमात्मा से रूठ जाओगे । फिर भी किसी न किसी प्रकार से आपका परमात्मा से परिचय करा देगा | लेकिन यदि गुरु रूठ गये तो संसार में ऐसी कोई शक्ति नहीं हे जो आपको परमात्मा से साक्षात्कार करा दे?
गुरु उपासना से क्या मिलता है? यह बात बहुत सोचने और समझने की है । हम शास्त्र कितनी भी बार पढ़ लें? फिर भी शास्त्र हमको समझा नहीं सकता है। लेकिन गुरु के पास आकर हम बहुत कुछ समझ सकते हैं | लेकिन यह गुरुओं का समागम भी, सन्तों का समागम भी बिना पुण्य के नहीं मिल पाता है |
“पुण्य पुज बिन मिलहिं न संता, सत्संगति संसृति कर अन्ता ।"