Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 71
________________ मन्दिर (७४) सत्संगति क्यों? ___लेकिन ध्यान रखना जो हरि रूठता है, वह हरि नहीं और जो गुरु रूठता है, वह गुरु नहीं। रुठने वाला कौन होता है? जिसका काम नहीं बनता है वह ही भगवान को गाली देता है। भगवान ने आज तक किसी को गाली दी | आप मन्दिर जाते हैं और आप ८-१० दिन मन्दिर नहीं जाओ तो क्या भगवान आपका हाथ पकड़कर पूछते हैं कि आप मन्दिर क्यों नहीं आये? लेकिन आप आठ-दस दिन मन्दिर आये, आपने प्रार्थना की और आपका काम नहीं हुआ तो आप कहते हैं तुम भगवान नहीं, “तुम तो पत्थर के भगवान हो ।" गाली देकर चलते बनोगे, क्योंकि आपकी सुनी नहीं। "नाराज सो महाराज नहीं, महारराज तो नाराज नहीं।" आप रूठेंगे गुरु से क्योंकि गुरु कड़क होता है । गुरु का अर्ध भारी होता है। गुरु का वजन हर व्यक्ति सहन नहीं कर पाता है और जो गुरु का वजन सहन नहीं कर पाये, वह संसार में कुछ नहीं कर पाता। "गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, धड-धड़ खाई खोट । अन्तर हाथ पसार के, बाहर मारे चोट ।।" कैसा उदाहरण दिया? यदि मिट्टी कुम्हार की धप्पों की चोटों से डर जाए. तो वह कभी भी व्यक्ति के सिर पर नहीं बैठ सकती, घड़ा नहीं बन सकती है। यदि पत्थर शिल्पकार की छैनी, हथौड़ी की चांटों से इर जाए तो वह कभी प्रभु को मूरत नहीं बन पाता है । जव एक पत्थर को इतना सहन करता पड़ता हैं, जब एक मिट्टी को इतना सहन करना पड़ता है, हम तो एक इन्सान हैं। हमें भी कुछ सहन करना होगा । वैसे भी कहते हैं। शिष्य और शीशी को डांट लगाकर रखना चाहिये। गुरु हमारे स्वरूप को उद्घाटित करते हैं । निमित्त कारण है गुरु हमारे जीवन के शिल्पकार हैं। हमारा जीवन अनगढ़ पाषाण की तरह है। मिट्टी की तरह है, उनके चरणों में जब हमारा जीवन समर्पित हो पाता है, हमारी श्रद्धा समर्पित हो जाती है, तब गुरु उसमें तरासते हैं। उसकी जैसी सम्भावना होती है, उस तरीके का रूप देते हैं। कोई हीरा होता है, कोई पत्रा होता है, कोई मोती होता है, कोई लाल होता है और कोई माणिक होता है। जिस तरह का होता है, जिस शक्ल का, जिस रूप का होता है, उसमें ढाला जाता है। ___ वह तो गुरू ही जानता है कि इसमें किस प्रकार की संभावना है? वैसे ही वह उसको तरासेगा | गुरु कुशल शिल्पी है जो भक्त की भावनाओं को तरासता है। गुरु साक्षात जीताजागता शास्त्र है। जिस शास्त्र को आपने महीनों और सालों में पका। उस शास्त्र का सम्पूर्ण निष्कर्ष गुरु के सानिध्य में बैठकर एक श्लोक में, एक शब्द में आपको मिल सकता है। ___ गुरु का अर्थ है: 'गु' का अर्थ अन्धकार और 'रु' का अर्थ दूर करना अर्थात् अन्धकार को दूर करना । जो हमारे अन्तरंग में बैठे हुये अज्ञान अन्धकार को दूर करते है, उन्हें गुरु कहते है | जो हमारे भ्रम को मिटा दें, वह गुरु हैं | गुरु वैद्य हैं , गुरु इन्जीनियर हैं, गुरु वकील हैं,

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