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मन्दिर
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सत्संगति क्यों? गुरु डॉक्टर हैं । जितने भी हमारे जीवन के पहलु जुड़े हुए हैं। जिन-जिन माध्यमों से होते हैं, वह सब गुरु के अन्दर उपलब्ध होते हैं | नेक सलाह देते हैं, इसलिये वकील हैं । हमारी जीवन शैली का एक नक्शा खींच देते हैं इसीलिये इन्जीनियर हैं। हमारे अन्दर बैठे हुये भ्रम रोगों को निकाल देते हैं, उनका ऑपरेशन करते हैं इसलिये डॉक्टर हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं जितने अच्छे तरीके से आप अपने मन की बात अपने गुरु को बता सकते हो, उतने खुलकर और किसी को नहीं । इसलिये प्रायश्चित का विधान है। गुरु के समक्ष गलती को स्वीकार करना। जैसे आपके शारीरिक चिकित्सा करने वाले फैमली डॉक्टर होते हैं, उसी प्रकार आपके एक फैमली गुरु भी होना चाहिये। जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं। एक सम्प्रदाय में गुरुमुखी होने की पूरी दीक्षा विधि है | गुरुमंत्र कान में फंका जाता है? गुरु क्या नहीं हैं? जो गुरु साक्षात् ब्रह्म से मिला देते हैं। वह परम मित्र हैं ।
"गुरुः ब्रह्मा गुरुः विष्णु, गुरुः देवो महेश्वरः ।
गुरु साक्षात् परम ब्रह्मा, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।" तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बन्धु, सखा तुम्ही हो । सय कुछ यही हैं | लेकिन तुम गुरु से कुछ छिपाने की चेष्टा करोगे तो कुछ नहीं मिलेगा | कुछ शिष्य ऐसे होते हैं जो अपटने की चेष्टा करते हैं कि गुरु से वह ले लें, वह भी ले लें आदि-आदि । ___ घर में माता-पिता की जायदाद होती है. कंकड़-पत्थर | हम तो इसको कंकड़-पत्थर ही मानते हैं । हीरा-मोती, सोना-चाँदी यह सव कंकड़-पत्थर ही तो है । यह सब मिट्टी से ही तो निकल्ले है। कोई आसमान से तां टपके नहीं है जो उनको झपटने के लिये उनकी खुशामद करेंगे । यह नहीं चलता हैं | गुरु की दृष्टि बड़ी विचित्र होती है 1 वह समझ जाते हैं- कौन व्यक्ति किस भाव से सेवा कर रहा है?
इतिहास के अन्दर उसी ने सब कुछ पाया है जिसने गुरु की निःस्वार्थ भाव से सेवा की है और जो गुरु के सिंहासन को छुड़ाने में लगे, गुरु की जायदाद, गुरु का आश्रम अपने नाम कर लो आदि । उनको सद पौदगलिक पदार्थ तो मिला, लेकिन जो आन्तरिक ज्योति गुरु की जल रही थी इसे जला नहीं रख पाया । वह ज्योति तो केवल उसी ने जला पायी जिसने गुरु के बाहरी हर पदार्थ को नकार दिया केवल आन्तरिकता से जुड़ा रहा।
पिछला इतिहास उठाकर देख लो । ऋषि-मुनियों के आश्रम में जितने भी बालक पढ़ते थे, जो गुरु की गाय चराता था, जो गुरु को ईधन लाकर देता था । उस बालक ने सबसे ज्यादा ज्ञान उपार्जन किया । और बह बैठे रह गये जो पौधी-पतरा पढ़तं रहे । उनको प्रभु के, परमात्मा के, गुरु के किसी के दर्शन नहीं हुए, वह पढ़-पढ़ाकर अपने घर चले गये।
विश्व के अन्दर गुरु एक सबसे बड़ी सामर्थ है। एक बार देवताओं के अन्दर विचारविमर्श चल रहा था कि संसार में सबसे बड़ा कौन है? तो उन्होंने कहा- सबसे बड़ी पृथ्यो है