Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 70
________________ मन्दिर (७३) सत्संगति क्यों? सम्यक् दर्शन, शान, चरित्र स्वरूप गुरु के लिए हमारा नमस्कार हो । इस प्रकार मंदिर जी में विराजित आचार्य-उपाध्याय-साधु-आर्यिका जी-ऐलक-क्षुल्लक-क्षुल्लिका जी को द्रव्य-अर्घ्य तीन ढेरी में (तीन जगह) चढ़ाना चाहिये । आचार्य-उपाध्याय-साधु को नमस्कार करते समय नमोऽस्तु बोलना चाहिये । आर्यिका माता जी के लिये यन्दामि-ऐलक-क्षुल्लक-क्षुल्लिका जी के लिये इच्छामि या इच्छाकार, ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणी जी को सावर हाथ जोड़कर बन्दना करना चाहिये। गुरु को नमस्कार करते हैं। पिच्छी हाथ का एक उपकरण है। यह एक अहिंसा का उपकरण है लोग कहते हैं कि महाराज इसको लगा दो | अरे! पिछठी तो कीड़े मकोड़ों को हटाने के लिये लगायी जाती है, आप कोई कीड़े-मकोड़े तो हो नहीं । इसकी मृदुता, प्राकृतिक कोमलता इतनी है कि इसे व्यक्ति अपनी नंगी (खुली) आँखों पर लगाये. फिर भी आँखों पर किसी प्रकार की जलन नहीं होगी, किरकिरी नहीं मचती है, दर्द नहीं होता है । यह प्राकृतिक उपकरण है | इसलिये इससे सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव बच जाता है, बचा लेते हैं, तब जमीन पर बैठते हैं। पिच्छी भी कहने लगी कि आपने कमण्डल की बात सुनी, अब कुछ मेरी भी बात सुनो "जो पिच्छी का पीछा करते, वे श्रावक कहलाने । जब तक पिच्छी का पीछा है, मोक्ष नहीं जा पाते।। जिनने पिच्छी पकड़ी, उनको मोक्ष लक्ष्मी बरती।। ऐसे त्यागी सन्तों का, पिच्छी खुद पीछा करती।।" गुरु, विश्व के अन्दर गुरु का सबसे बड़ा महत्त्व है। हर मजहब, हर धर्म, हर संस्कृति, हर सम्प्रदाय में उस धर्म को जिन्दा रखनं वाला है तो वह गुरु है | यदि ये गुरु नहीं होते तो जरा आप कल्पना करके देख लो कि धर्म की क्या दशा होती? इस धर्म की सुरक्षित रखने के लिये हमारे गुरुओं ने कितना बलिदान दिया है? कितना तप, त्याग संयम, तपस्या की है? गुरु एक ऐसा माध्यम है जो परमात्मा से साक्षात्कार कराता है | कबीरदास जी अपने एक दोहे में लिखते हैं "कवीरा वे नर अंध हैं, गुरु को कहते और। हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु सटे नहीं ठौर ।।" अभी किसी साहित्यिक को बुलाया जाए और इसका अर्थ कराया जाए कि इस दोहे का अर्थ करो । “कबीरा वे नर अन्ध हैं" वे मनुष्य अन्धे हैं जो गुरु को और बताते हैं, उपेक्षित बताते हैं, गुरु की उपेक्षा करते है, गुरु का अपने जीवन में कोई महत्त्व नहीं समझते हैं। अंतिम पंक्ति में कहे हैं कि “हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर" । क्या अर्थ इसका हुआ? भगवान रूठ जाए तो गुरु ठौर है और यदि गुरु रूठ गया तो कोई ठौर नहीं है । ये संसारी जीव तो अपने मतलष का अर्थ निकालेंगे।

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