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मन्दिर
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माला क्यों? की झलक पाने के लिये, आस्था जगाने के लिये व्यक्ति मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च की ओर जाता है।
मन्दिर में पहुँचकर हमने बहुत कुछ किया | हमने मूर्ति से, प्रतिमा जी से, वुत से बहुत कुछ खोजा व पाया । जिनवाणी की भी वन्दना की, उसका स्वाध्याय किया, अध्ययन किया। जिनवाणी भी मोक्ष मार्ग का एक नक्शा है । कहाँ किस स्थान पर किस वस्तु का अस्तित्व है? इस बात को बताने के जिनवाणी परम साक्ष्य है। जिनवाणी भी अद्भुत ज्ञान का खजाना है। कपोल कल्पित ज्ञान का खजाना, जिनवाणी नहीं मानी जाती है।
वर्तमान में बहुत सारे साहित्यों का सृजन हो रहा है। उनके नाम कई तरह के हो सकते हैं। लेकिन उसे जिनवाणी नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि वही सारी की सारी कहानियाँ हमें क्षणिक सुख दिखाती हैं और बाद में हमारे सारे अस्तित्व को लूट लेती हैं । उन कहानियों में उन कथाओं का अपना कोई अस्तित्व नहीं है | भौतिक जगत का अस्तित्व तो हो सकता है। लेकिन परमात्म जगत का अस्तित्व उन कहानियों में नहीं है।
जिनवाणी के अन्दर, शास्त्रों के अन्दर उस चरम शक्ति को अनुभुति करके लिखा है। जिन्होंने उस आत्मा का साक्षात्कार किया है, यह चश्मदीद लोगों के बयान हैं. चश्मदीद लोगों के दस्तावेज हैं | जिन्होंने आत्मा को बिल्कुल साक्षात् देखा है । किन-किन. कैसी-कैसी परिस्थिति में आत्मा के साथ क्या-क्या हुआ है? बिल्कुल साक्षात् अनुभूत किया है, चश्मदीद बने हैं और उनके बयानों को लिपिबद्ध किया गया है उसे ही शास्त्र कहा है। उन अनुभूतियों को जिन्होंने साक्षात्कार किया है, करेंगे और कर रहे हैं, वह परमेष्ठी हैं, गुरु हैं। अभी आप मन्दिर जी में थे । मन्दिर में अपने इष्ट का दर्शन किया, जिनवाणी को नमन किया।
माला क्या
आपके पास समय रहा तो आपने माला भी फंरी । प्रायः हर धर्म, संस्कृति में माला का भी अपना महत्त्व है। माला फेरी जाती है। कोई उल्टी माला फेरते हैं। दाने बाहर को ले जाते हैं। कोई अन्दर की तरफ फेरते हैं। कोई हाथ से फेरते हैं। कोई श्वासोच्छवास से फेरते हैं । कोई रत्नों की माला से फेरते हैं, कोई मोतियों से फेरते हैं, कोई मूत की माला फेरते हैं | तुलसी की माला फेरते हैं. कोई रुद्राक्ष की माला फेरते हैं । परन्तु आजतक एक भी माला नहीं फिरी
माला फेरत युग गया, गया न मन का फेर ।
कर का मनका झारिकै, मन का मनका फेर ।। माला क्यों फेरी जाती हैं, माला में कितने दाने होते हैं ? माला में १०८ दाने होते हैं । प्रायः