Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 65
________________ मन्दिर (६८) माला क्यों? कर्मों का आस्रव हो रहा है, वह प्रभु का नाम लेने से रुक जाए । एक-एक दरवाजे पर एकएक प्रभु, एक-एक परमात्मा को खड़ा कर देते हैं नाम से लेकर कि प्रभु, तुम यहाँ खड़े हो जाओ । यह कर्म यहाँ से आ रहा है | इसको यहाँ से न आने देना, मेरे अन्दर की शान्ति को यह कर्म नष्ट कर देते हैं । जब प्रभु का नाम वहाँ केन्द्रित हो जाता है, भावनाओं से, भावनात्मक तरीके से तो फिर पाप कर्म की हिम्मत नहीं है कि वह अन्दर घुस आये । प्रभु हमारी आत्मा की पहरेदारी करते हैं १०८ तरीके से। लेकिन हमने आज तक उस तरह से प्रभु को पुकारा ही नहीं कि वह हमारी पहरेदारी करें। हमने तो अपने विषय-कषायों से इतना मेल-मिलाप कर रखा है कि वहां प्रभु आता ही नहीं है । आता भी है तो दरवाजा देखकर चला जाता है कि इसकी परिणति ठीक नहीं हैं | इसके साथ मैं और पिट जाऊँगा । क्योंकि प्रभु सोधता है कि जब तुम्हें हमारे अन्दर आस्था नहीं है तो फिर मैं क्या करूँगा तुम्हारे अन्दर जा करके तुम्हारे संग में हम पिस जायेंगे । प्रभु बहुत समझदार है। प्रभु को इतना भोला मत समझो । प्रभु आपकी थोथी बातों से प्रसन्न नहीं होगा। प्रभु भोली बातों से प्रसन्न होता है, थोथी बातों से नहीं। ___ एक गड़रिया था । अपनी भेड़ें चरा रहा था । वह बहुत भोला था और ऐसे लोगों को भगवान मिल जाते है | बड़ा विचित्र है । श्री महावीर जी ने एक ग्वाले को सपना देकर महावीर भगवान निकले । जो जैन धर्म को जानता भी नहीं और मानता भी नहीं है। उस भोले जीव को श्री महावीर भगवान दिखे। उस समय तो राजा महाराजा सभी थे | भगवान बड़े आदमी के बन जाते, लेकिन नहीं । गरीब की जो गरिमा है,गरीवता की जो सुगन्धि है कैसी सुगन्धी? जैसे बहुत धूप निकलने के बाद जब बरसात का एक झोका आता है तो पृथ्वी के अन्दर सोधी-सोंधी मिट्टी की सुगन्धि होती हैं ऐसी गरीब की आत्मा में भक्ति की सुगन्ध होती है। उसकी दिखावे की कृत्रिम सुगन्ध नहीं होती। उसका प्रभु के प्रति, गुरु के प्रति कैसा प्रेम होता है? तुलसीदास जी महाराज ने एक जगह लिखा है “ज्यों गरीब की देह को, जड़कारे को घाम | ऐसे कब लग हो प्रभु, तुलसी के मन राम ।।" तुलसीदास जी ने कभी बड़े आदमी का उदाहरण नहीं दिया । गरीब की देह को उस जड़कारे का घाम कैसा सुहावना लगता है, मीठा लगता है ? उसकी ललक पाने के लिये वह भागता है। ऐसे कब लग हो प्रभु तुलसी के मन राम? ऐसी भक्ति, ऐसी उमंग उस भक्त के अन्दर होती है तो वह प्रभु हमारी आत्मा का जाप, माला के माध्यम से स्मरण करते हैं तो वह आता है। लेकिन मुश्किल बात यह है

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