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मन्दिर
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ध्यान रखना, जो आदमी अपने जीवन में बड़ी मेहनत से कमाता है, उसको पैसे जाने में बड़ी तकलीफ होती है कि मेरा पैरा जा रहा है और जो हराम की मिली हुयी है, हराम जैसा ही खाता है, उसको दुःख दर्द नहीं होता है। जो अपनी आत्मा को कष्ट सहन करके प्राप्त करेगा, यह अपनी आत्मा के अन्दर विकारों को घुसने नहीं देगा कि मैंने बड़ी मेहनत से इसे प्राप्त किया है। अगर ऐसे ही मुफ्त में आत्म मिल गयी तो उसे खिलाये जाओ, पिलाये जाओ ।
स्वाध्याय
स्वाध्याय हमें अपनी तरफ आने का संकेत देता है। स्वाध्याय हमारी अन्तरंग परणति को जाग्रत करने की भूमि है। हमारा यथार्थ आन्तरिक का दर्पण है। हमारी जितनी भी दैनिक परिचर्चायें हैं वह सभी स्वाध्याय पर टिकी हुयी हैं। विश्व की जितनी भी सोने से लेकर जागने तक और जागने से लेकर सोने तक क्रियाओं का हर प्रकार का ज्ञान हमें स्वाध्याय के माध्यम से होता है । अपने जीवन को किस प्रकार से जियें यह भी हमें स्वाध्याय से मिलता है। हर परिस्थिति का सामना किस प्रकार से करें? किस प्रकार से उन लोगों ने किया है, यह सभी फार्मूले हमें मिलते हैं। स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए | स्वाध्याय जैसी विधि और सरती चीज कोई नहीं हैं थोड़ी सी अन्य चीजें छोड़ करके। चार ग्रन्थों का अपने अन्दर स्वाध्याय कर लो। इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कहेंगे ।
एक बात और कह देते हैं, मन्दिर जी में बने चित्रों को भी देखने से स्वाध्याय होता है । क्योंकि इन चित्रों की भाषा अनपढ़ भी पढ़ लेते हैं। अतः मन्दिरों में चित्र बनाने की परम्परा बहुत प्राचीन हैं। आप प्रतिदिन उन चित्रों को देखें, और चिन्तन करें। संसार वृक्ष, षट्लेश्या दर्शन आदि के एक-एक चित्र हो पूरे शास्त्र का सार समझा देते हैं। अतः इन चित्रों के देखने से भी स्वाध्याय होता है ।
इसी के साथ मन्दिर जी में लिखे आगम-श्लोक, नीतिवाक्य, दोहे आदि पढ़ने से भी स्वाध्याय होता है । अतः येनकेन प्रकारेण स्वाध्याय करते ही रहना चाहिए।
आज बस इतना ही.... बोलो महावीर भगवान की......
व्यक्ति की अतृप्त आकांक्षायें ही जीवन में ईर्ष्या, विद्रोह एवं आसक्ती का कारण बनती हैं। तृप्ति में संतोष, सहयोग एवं अनासक्त भाव झलकता है।
- अमित वचन