Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 60
________________ मन्दिर (६३) स्वाध्याय रहे और जंगलों में पड़े रहे, अभ्यास नहीं करे । और जय लड़ाई का समय आये तो क्या युद्ध जीत पायेंगे? नहीं जीत पायेंगे युद्ध | सुखी जीवन में किया गया नस्य का अभ्यास दुःख आने पर पलायमान हो जाता है। झूटी पर टँग जाता है। इसलिये इतनी वात होती है तो हम लोग फालतु थोड़े ही थे, घर में मौज मारते, आत्मा-आत्मा चिल्लाते कोई दिक्कत थी क्या? लेकिन उस आत्मा को पाने के लिये दुःख-सुख सबकी अनुभूतियों करते हैं। उसे मांजते हैं कि आत्मा का समत्व तो आ जाए । विपरीत परिस्थितियाँ जुड़ती है कि जीवन से जब बौखलाहट उत्पन्न होती है, तब उस समत्व को पाना, कषाय का शमन करना है । मैं ऐसे विद्वान की बात कर रहा था जो आत्मा, आत्मा आत्मा चिल्लाते थे। हाय! मेरी प्यारी आत्मा! प्रभु आत्मा, प्रभु आत्मा! उसके बिना उनका काम नहीं चलता था। एक बार उनको फोड़ा हो गया और जब फोड़ा हुआ तो भाई उसकी चोरा-फाड़ी हुई, डॉक्टर ने क्या किया कि उसको मसक दिया तो वह कहने लगेहाय! मरा | एक कोई खड़ा था ! वह व्यक्ति कहने लगा कि आत्मा तो मरती नहीं है। पण्डित जी कहते हैं भाड़ में गयी वह आत्मा, अभी तो मैं मरा जा रहा हूँ। जरा सोचिये, विचारय जिस आत्मा के व्यक्ति ने जीवन भर गीत गाय और उस आत्मा को एक सेकेण्ड़ नहीं लगा, भाड़ में डाल दिया। बताईये, आप तो हमारी आत्मा से हमें कितना प्यार है ? बन्दरिया जैसा | सच्चा प्यार चिड़िया का और झूठा प्यार बन्दरिया का । चिड़िया का प्यार सच्चा होता है? मालूम है आपको बरसात के दिनों में दाना-चुग कर लाती है। जब उसका बच्चा छोटा होता है तो वह अपने मुँह से चुगाती है। और बन्दरिया का प्यार देखो, अगर आप बच्चे को खाने को दोगे तो उस बच्चे से छुड़ाकर खा लेगी और बन्दर की एक और विशेषता है कि उसका बच्चा मर जाए तो उसे लिये-लिये घूमंगी। कितना प्यार है, एक प्रेक्टीकल करके देखो । बन्दरिया को पानी के अन्दर डालो और पानी का स्तर धीरे धीरे बढ़ाओं तो जब तक पानी का स्तर गर्दन तक आयेगा, तब तक अपने बच्चे को ऊपर बैठायेगी और जैसे ही पानी का स्तर बढ़ा, वैसे ही अपने बच्चे को दोनों हाथों से नीचे डाल देती है और उसके ऊपर खड़ी हो जाती है बन्दरिया। । ऐसा ही हमारा हाल है | जब दुःख पड़ेगा तो भाड़ में डाल देंगे आत्मा को । शरीर के प्रति मोह जाग्रत हो जायेगा कि हमारा शरीर बचना चाहिये । सम्यक् दृष्टि को शरीर से मोह नहीं होता है | वर्णी जी को, आचार्य वीर सागर महाराज जी, कुन्थु सागर महाराज जी जो अभी फिरोजाबाद में समाधिस्थ हुये हैं उनको फोड़ा हो गया था जाँध के अन्दर | पूरी जाँघ पोली हो गई.। डॉक्टर लोग पुरी सलाइ डाल-डाल कर निकालते थे मवाद । उनके चेहरे पर वह खुशी, वह मुस्कान, आत्मा अलग है और शरीर अलग है क्योंकि उन्होंने उसे दुःख के माध्यम से प्राप्त किया है।

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