Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 31
________________ मन्दिर (३४) यत्तारि दण्डक इसमें भी कोई दोष नहीं हैं | सामग्री को विनय से चढ़ाना चाहिये फेंकना या फैलाकर नहीं चढ़ाना चाहिये । वेदी के सामने रुपये-पैसे नहीं बढ़ाना चाहिये यदि रुपये-पैसे बढ़ाना ही है तो मन्दिर जी में रखी गोलक में चढ़ाना चाहिये। क्योंकि गोलक के पैसों से मंदिर जी की सुरक्षा, उपकरण आदि की व्यवस्था होती है। चावल आदि चढ़ाने के बाद नमस्कार करना चाहिये । पुरुषों यानि मनुष्यों को शास्त्रोक्त विधि से पंचांग यानि दोनों पैरों के घुटने, दोनों हाथों की कुहनियाँ सहित दोनों हाथों को नारियल के समान जोड़कर धरती पर रखकर उस नारियल के समान बद्ध हाथों पर अपना सिर रखना एवं अष्टांग यानि सर्वाग से जमीन पर पट्ट लेटकर नमस्कार करना चाहिये । साधु, आर्यिका, महिलायें, बच्चियों को गवासन यानि नीचे जमीन.पर घुटने टेकते ही घुटनों का बायें हाथ की तरफ तथा पैरों के पंजों को दायें हाथ की तरफ ले जायें, जिस तरह गाय तिरछा बैठती है | पुनः दोनों हाथों की कुहनियाँ जमीन से स्पर्श करती हो तथा दोनों हथेलियाँ नारियल के समान आकृति में होकर जमीन छू रही हो ओर उसी पर अपना सिर रखकर नमस्कार करना चाहिये । नमस्कारात्मक मुद्राओं का प्रभाव भी हमारे मन-मस्तिष्क एवं शरीर पर पड़ता है। शरीर की बनावट एवं बस्त्रों के पहनाब आदि से स्त्रियों एवं पुरुषों की नमरकार मुद्राओं में अन्तर आ जाता है। सही तरीके से नमस्कार मुद्रा में प्रतिदिन दर्शन करने पर परिणामों की विशुद्धि में अवश्य ही प्रभाव पड़ता है। नमस्कार करते समय भी हमें स्तुति आदि बोलते रहना चाहिये एवं जिनेन्द्र देव के विभिन्न । विशेषणों को उच्चारण करते हुए | जैसे - 'हे सर्वज्ञ! वीतराग!! हितोपदेशो!!! जन्म जरा-मरण आदि अठारह दोषों से रहित । अतिशय आदि छियालीस गणों से सहित, अरिहंत परमेष्ठी आपको हमारा अनन्तो अनन्तों बार नमस्कार हो ।' ऐसा बोलते हुए कम से कम तीन यार नमस्कार मुद्रा में नमस्कार करना चाहिये । बैठकर यथायोग्य नमस्कार करने से मानसिक तनाव दूर होता है, विनय गुण प्रगट होता है, पूज्यों के प्रति आदर, वहुमान एवं समर्पण भाव झलकता है तथा 'वन्दे तद्गुण लब्धये नमस्कार करने से भगवान जैसे ही वीतरागता आदि गुणों की प्राप्ति हो, ऐसी भावना करते हुए नमस्कार करना चाहिये। छोटे बच्चों को नमस्कार कराते समय श्रद्धा हो, बुद्धि हो, विवेक हो, सदाचार हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो, आदि बोलना सिखा देना चाहिये । आज बस इतना ही... बोलो महावीर भगवान की..........

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