Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 44
________________ मन्दिर (४७) जिन बिम्बोपदेश है कि सिर के छल्ले बाल केश नहीं हैं। बल्कि योग साधना के माध्यम से प्राप्त की गई ऊर्जा के केन्द्र हैं। यही ऊर्जा केन्द्र प्रारम्भिक दशा में बीजबुद्धि, कोष्ठबुद्धि आदि ऋषियों के रूप में ज्ञान के संग्राहक भी होते हैं। आपने बड़े-बड़े वैज्ञानिकों, दार्शनिकों के बालों को गौर से देखा हांगा। उनके बालों में छल्ले या लहरियाँ आती हैं। यही धीरे-धीरे ज्ञान की परिपक्व दशा में मस्तिष्क को आवृत करती हैं और पूर्ण संयम साधना से "सीनायें" का रूप ले लेती हैं। इसके बाद हम देखते हैं कि प्रतिमा के ऊपर तीन छत्र लगे हुये हैं। कहीं-कहीं छत्र उल्टे लगते हैं यानि सबसे छोटा नीचे एवं सत्यसे लड़ा ऊपर जबकि वास्तु शास्त्र के हिसाब से सबसे नीचे बड़ा एवं सबसे ऊपर छोटा छत्र लटकाना चाहिये, तभी उन छत्रों का प्रभाव होता है। ये तीन छत्र भगवान के तीन लोक के स्वामी, अधिपति होने का संकेत देते हैं। - कहीं-कहीं प्रतिमा जी के ठीक मस्तक के पीछे गोल भामण्डल या तो धातु के बने देंगे होते हैं या रंग से बने होते हैं। भामण्डल की आभा साक्षात् समवशरण में भगवान के पूर्ण निर्मल ज्ञान के विकास का सन्देश देती है कि अब इसके आगे विकास की कोई उम्मीद या गुंजाइश नहीं है। आपने सुना होगा, पढ़ा होगा कि भगवान के समवशरण में जो भामण्डल होता है, उसमें भव्य जीव अपने सात भव (तीन आगे के तीन पीछे के एक वर्तमान) देख सकता है Į क्या यह सम्भव है? हाँ, एकदम सम्भव है। आज के वैज्ञानिक युग में कम्प्यूटर की स्क्रीन पर, बटन दबाते ही पिछला लेखा-जोखा आ जाता है। आगामी भवों को पर्यायों के परमाणु भी इस भामण्डल की पकड़ में आ जाते हैं। अतः जब कोई भव्य जीव इस प्रकार से चिन्तन करें कि हमारा इस भव से पहला, दूसरा या तीसरा भय क्या था या क्या होगा या वर्तमान भव में क्या है? तो वह तुरन्त ही हिसाव लगाकर भामण्डल पर झलक जायेगा। यह प्रक्रिया ठीक वैसे ही है जैसे टी.वी. का चैनल बदलने के लिये रिमोट कण्ट्रोलर कार्य करता है। ठीक उसी प्रकार से भावनाओं के रिमोट से भामण्डल रूपी टी.वी. पर आपके भवरूपी चित्र दिखते हैं । आपने सुना, पढ़ा होगा कि समवशरण में भगवान के ऊपर एक अशोक वृक्ष भी होता है। अतः समवशरण की प्रतीक रूपी वेदी में भी अशोक वृक्ष को रंग से बनवा देते हैं। क्या आप समझते हैं, अशोक वृक्ष क्या है और इसका महत्त्व क्या है? आचार्य प्रभो । आगम-शास्त्रों में लिखते हैं कि जिस वृक्ष के नीचे तीर्थकर दीक्षा लेते हैं या उन्हें केवल ज्ञान होता है, वही वृक्ष अशोक वृक्ष कहलाता है। यह अशोक वृक्ष भी इस संदेश का प्रतीक है कि जो भी भव्य जीव धर्म का आश्रय लेते हैं, वे शोक रहित हो जाते हैं। आपने सुना पढ़ा या चित्र में देखा होगा कि तीर्थंकर महावीर जंगल के एक रास्ते से निकल रहे थे। उन्हें एक चण्डकौशिक नाम के सर्प ने पैर में डस लिया। महावीर आशीर्वाद मुद्रा में खड़े रहे। सर्प ने देखा, मैंने आज तक जितने व्यक्तियों को काटा, लाल खुन निकला

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