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मन्दिर
स्वाध्याय
क्या स्वरूप है? स्वामी समन्तभद्र आचार्य देव कहते हैं:
अन्यून-मनति-रिक्तं, याथातथ्यं विना घ विपरीतात्। निःसंदेहं वेद यवाहुस्तज्ज्ञान-मागमिनः ।। ४२ । 1 (रत्न. श्रा.) जिनवाणी कैसी होनी चाहिये जिसकी हम आराधना करते हैं? "अन्यून-मनित रिक्तं" न्यूनता रहित और अधिकता रहित"याथातथ्य" जैसी है उसी प्रकार सं । विपरीतता रहित, सन्देह रहित यह जिनवाणी का, शास्त्र का स्वरूप है ! आगम के ज्ञाता पुरुषों ने इसे शास्त्र का स्वरूप कहा है। ऐसी जिनवाणी का अध्ययन करना चाहिये, ऐसी जिनवाणी को पढ़ना चाहिये ।
स्वामी समन्तभद्र आचार्य अपने समय के उद्भट, न्यावशास्त्र के शास्त्री रहे हैं । कुन्दकुन्द अपचार्य से भी ज्यादा उन्होंने ख्याति प्राप्त की और प्रभावना की । इसलिये शिलालेखों में ऐसा मिलता है कि वह आगामी काल में तीर्थंकर होंगे, उनके सम्यक ज्ञान की परिभाषा. उनके सम्यक् दर्शन की परिभाषा और चारित्र की जो भी व्याख्या है, इतनी व्यापक और बहुआयामी है कि आप उसे किसी भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की स्थिति में लगा सकते हैं | बड़ी व्यापक परिभाषाओं को उन्होंने अवतरित किया है। परिभाषा का मतलब प्रमाण-नय, निक्षेप, आगम अनुमान आदि से जो सुसज्जित हो, वह परिभाषा है। यानि प्रमाणित भाषा को परिभाषा कहते हैं | व्यापक भाषा को परिभाषा कहते हैं। चारों अनुयोगों में सबसे पहले प्रथमानुयोग है। प्रथमानुयोग का क्या स्वरूप है? स्वामी समन्तभद्र आचार्य अपनी भाषा में बताते हुये रत्नकरण्ड श्रावकाचार प्रन्ध के अन्दर अपनी बात कहते हैं
प्रथमानुयोग-माख्यानं, चरितं पुराण-मपि पुण्यम् ।
बोधि-समाधि-निधानं, वोधति बोधः समीचीनः ।।४३ ।। (रत्न. श्रा.) प्रथमानुयोग पुराण पुरुषों का, ऐतिहासिक पुरुषों का चरित्र व्याख्यायित करता है। प्रथमानुयोग पुराण पुरुषों का चरित्र बतलाता है । जिनका जीवन चरित्र पढ़ने से, सुनने से क्या होता है ? "योधि समाधि निधान ।” बोधि का मतलब सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, समाधि का मतलव समता रूप परिणाम, निधान का अर्थ खजाना जो सम्यक् ज्ञान और समता रूप परिणाम का खजाना है | इसलिये इसे बौद्धिक पुरुषों ने सम्यक् ज्ञान कहा है | प्रथमानुयोग ऐसा अनुयोग है जो हर परिस्थिति में व्यक्ति को सम्बल बनाता है। ___ आज का व्यक्ति आत्महत्या सबसे ज्यादा क्यों करता है ? दुःख के कारण, क्लेश के कारण, अपवाद के कारण | उसे कुछ दिखता नहीं है और वह मर जाता है। प्रथमानुयोग हमें सम्बल देता है । सीता ने कभी आत्महत्या करने की बात नहीं सोची, द्रौपदी ने मरने की बात नहीं सोची, अनन्तमती, मैना सुन्दरी के आत्महत्या नहीं की | सेठ सुदर्शन और वारिषेण ने आत्महत्या