Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 51
________________ मन्दिर (५४) स्वाध्याय जैसे कभी अचानक अन्धेरा हो जाता है और अन्धेरा होने के बाद अचानक उजाला होता है तो सभी के मुँह से एक कौतूहल निकलता है, आवाज होना शुरु हो जाती है। वैसे ही हमारे जीवन में जब आन्तरिक उजाला हो जायेगा, अपने आप ध्वनियाँ मुखरित होनी शुरु हो जायेगी । अभी तक आप जिनेन्द्र भगवान के साक्षी में खड़े थे। जिनेन्द्र भगवान के प्रतिबिम्ब को आपने निहारा और जिनेन्द्र भगवान का उपदेश प्राप्त किया। स्वाध्याय अब आप जिनवाणी के दर्शन के लिये पहुँचेंगे। यहाँ पर शायद जिनवाणी को अर्घ्य चढ़ाने की ऐसी व्यवस्था नहीं है। जिनवाणी की व्यवस्था, विशेष रूप से मन्दिर जी में ही एक अलग अलमारी में हुआ करती है और वहाँ पर बड़े सुव्यवस्थित ढंग से ग्रन्थ रखे होते हैं। लेकिन हम जितने सुन्दर ढंग से जिनवाणी को विराजमान करेंगे, उतना ही पुण्य एवं परिणामों की विशुद्धि हमारी होगी | अब आप देख लो, आपके यहाँ पर जिनवाणी कैसे रखी हुई है? पूजा की जिनवाणी पढ़ने की जिनवाणी सारी अव्यवस्थित एक आला, एक आलमारी ऐसी होनी चाहिये जो पूर्ण रूप से सुव्यवस्थित हो। जिसमें गद्दी चलती है, जिसमें आप शाम को शास्त्र पढ़ते हैं, वह गद्दी का प्रन्थ कहा जाता है। ग्रन्थ का आसन अलग होना चाहिये। i आप गुरुद्वारे में चले जाइये, कितने सुव्यवस्थित ढंग से गुरुवाणी रखी रहती है। आप तारणपंथ के चैत्यालय में चले जाइये कितने अच्छे सुव्यवस्थित ढंग से परिमार्जित ढंग से, जिनवाणी का सम्मान करते हैं। कुरान शरीफ और बाइबिल को देख लीजिए । कितने अच्छे ढंग से रखते हैं। एक जैनी हैं, इतनी जिनवाणी है कि किन-किन को संभालते रहें । कद्र नहीं करते हैं। जिनवाणी का भी दर्शन करना चाहिए। जिस प्रकार से हम जिनेन्द्र भगवान को अर्घ्य चढ़ाते हैं, उसी प्रकार से जिनवाणी को भी चार अनुयोगों के प्रतीक चार ढेरी में अर्घ्य चढ़ाना चाहिये | कैसे चढ़ाना चाहिये... उदक चन्दन तन्दुल पुष्पकैः चरु सुदीप सुधूप फलार्थकैः । धवल मंगल गान रचा कुले, जिन गृहे जिन शास्त्र - महं यजे ।। प्रथमं करणं-चरणं द्रव्यं नमः जलादि अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । प्रथमानुयोग, करणानुयोग, घरणानुयोग, द्रव्यानुयोग को हमारा नमस्कार हो । हमारी जिनवाणी चार अनुयोग रूप है। आपकी चतुर्भुज चार अनुयोग भरें। जैसे- चार वेद हैं- अर्थवेद, यजुर्वेद, सामवेद और ऋग्वेद । ऐसे ही आचार्यों ने इनको भी वेद कहा है। जिनवाणी के माध्यम से सम्यक ज्ञान की आराधना करनी चाहिये। जिनवाणी क्या है, शास्त्र क्या है और शास्त्र का "

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