Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 49
________________ मन्दिर (५२) शिखर-गुम्मज दर्शन, पूजन, ध्यान आदि करने से संस्थान विच्य नाम का धर्मध्यान होता है, विशुद्धि बढ़ती है एवं अशुभ कर्मों की निर्जरा होती है। इसी के साथ ही यदि इस जीवन का संस्कार भी अच्छा बना तो जब यह जीव मरकर देव पदवी को प्राप्त करता है तो वहीं से विचार करता है कि वह नन्दीश्वरद्वीप, जम्बूद्वीप कहाँ है जिन्हें मैंने मनुष्य भव में कृत्रिम रूप से देखा था? आज हम देवत्व पदवी के धारी हैं, वहाँ पहुँचने में समर्थ हैं। अतः आज हम उन अकृत्रिम जिनालयों की साक्षात् वन्दना करने चलें और अपने जीवन को सफल बनायें | इस प्रकार करने से 'सम्यग्दर्शन' जैसे परमार्थ अमूल्य रत्न की प्राप्ति होती है। अतः इस प्रकार से भावना करते हुये प्रतिदिन मन्दिर जी अवश्य आना चाहिये । आज बस इतना ही..... बोलो महावीर भगवान की... आपके पिता के द्वारा बनाये गये हर भौतिक साधन जैसे मकान, दुकान, वस्त्र, कानून आदि शायद आपको या आपके बच्चों को अच्छे नहीं लगें। क्योंकि भौतिकता के परिवेश में सबका रूप-स्वरूप बदलता ही रहता है। नई-नई डिजाइनों के प्रति आकर्षण- आस्था होने से पुरानी वस्तुएँ उपेक्षित, उदासीनता एवं अशान्ति का कारण बनती है। लेकिन आगम-धर्म की व्यवस्था आपके पूर्वजों के काम आयी थी जिससे वे अपने गृहस्थ जीवन को सुख शान्ति से व्यतीत कर गये, अतः जो भी इस धर्म व्यवस्था को निःसंकोच पालन करेगा उसी का जीवन इहलोकपरलोक में सुखी सम्पन्न होगा। अमित वचन

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