Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ मन्दिर (६०) स्वाध्याय धर्मोपदेश- आधाों ने बताया कि धर्माप्रदेश में चार प्रकार की कथाओं का कहना ही धर्मोपदेश है । आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी और निवेदनी । चार प्रकार की कथाओं को करना धर्मोपदेश है। वहाँ बैठकर हमें स्वाध्याय करना चाहिये । स्वाध्याय हमें क्या सिखाता है । हेय को छोड़ना और उपादेय को ग्रहण करना | चार अनुयोग हमें क्या सिखातं हैं? अनुयोगों को पढ़ने से क्या होता है? प्रथमानुयां पढ़ने सं संयेग जानत होता है और करणानुयोग पढ़ने से प्रशमता आती है यानि कषायों का उपशमन होता है। चरणानुयोग, अनुकम्पा, करुणा, दया गुण बतलाता है और द्रव्यानुयोग आस्तिक्य गुण को प्रकट करता है। संवेग, प्रशम, अनुकम्पा और आस्तिक्य यह चार सम्यक्त्व के लक्षण हैं। जब हम प्रथमानुयोग पढ़ते हैं तो हमारे अन्दर क्या? संवेग अवतरित होता है, हम कहाँ है। यह बात हमारे मानस में आ जाए कि हम कहाँ है? समझ लो, वहीं से उजाला शुरू हो गया । इस विश्व के अन्दर हमारा कितना-सा अस्तित्व है? जैसे समुन्द्र के अन्दर एक बूंद का अस्तित्व है। अपने अस्तित्व की स्वीकारता जहाँ हो जाए, वहीं आस्तिक्य गुण है । जहाँ व्यक्ति अपने गुणों को पहचान ले, वहीं आस्तिक्य गुण है। ___ “परद्रव्यन सौ भिन्न आप में रुचि सम्यक्त्व भला है।" करणानुयोग में प्रशमता आती है। कषायों का उपशमन होता है । नहीं, हमें कषायें नहीं करनी है, इसका ..... अनुभव होता है । हमें नहीं करना है ऐसा पाप । अन्तरंग में करणानुयोग की व्यवस्था अपने आप जाग्रत हो जाती है। चरणानुयोग बचाता है। किसको? उस विशुद्धि को, जिस परिणाम को, जिस सम्यक्त्व को आपने प्राप्त किया है, उसकी सुरक्षा करने वाला कवच है चरणानुयोग । द्रव्यानुयोग प्रकाश है। फैल रहा है यहाँ केवल अनुभूति-अनुभूति है । जहाँ शब्द विराम ले जाते हैं, शरीर विराम लं जाता है, वचन विराम ले जाते हैं, वहाँ द्रव्यानुयोग फलित होता है। तो स्वाध्याय हमारे दैनिक जीवन में निरन्तर आ सकता है। आप यह मत समझिये कि ग्रन्थ पढ़ने से ही स्वाध्याय होगा | स्वाध्याय हमें हेय और उपादेय की बात समझाता है । इसके अलावा स्वाध्याय में है ही नहीं कुछ। आपने गणेश प्रसाद वर्णी जी का नाम सुना होगा। उनकी धर्ममाता चिरौंजायाई एक दिन गेहूँ बीन रही थीं। अकस्मात् वर्णी जी कहीं से घुमकर आये। मनुष्य में एक खासियत है, कोई भी व्यक्ति काम कर रहा हो तो उसे देख रहे हैं कि वह काम कर रहा है फिर भी हम पूछते हैं कि क्या काम कर रहे हो? सब आँखों के अन्धे हैं। पूछ लिया, धर्ममाता चिर्राजायाई से कि आप क्या कर रही है? माँ जी कहती हैं- बेटा मैं स्वाध्याय कर रही हूँ । वर्णी जी को गुस्सा

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78