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मन्दिर
(४९)
जिन बिम्बोपदेश
का कमल खिल जाये | अतः आप पहले तो मूर्ति को बड़े गौर से देखें, पुनः धीरे से आँखों को बन्द करके, मूर्ति के रूप को अपनी वन्द आँखों में देखने का प्रयत्न करें। पुनः आँखें खोलें और मूर्ति को देखें और पुनः आँखें बन्द करें। जब तक हृदय पटल पर मूर्ति का रूप अंकित नहीं हो जाता, तब तक आप प्रतिदिन इस प्रकार का अभ्यास करते चले जायें।
प्रारम्भ में आपके उपयोग की अस्थिरता के कारण मूर्ति या वेदी चलती या हिलती हुई आदि दिख सकती है। इस हलन चलन देखने से घबड़ाने की जरूरत नहीं है। उस समय हमारे चंचल मन, अस्थिर बुद्धि कारण ही देखा ही रहा है। जैसे - जापन शान्त पानी में अपना प्रतिय देखा होगा, यदि पानी में थोड़ी सी तरंगे उठ जायें तो वह प्रतिबिम्व हिलता-चलता दिखाई देता है। टेलीविजन भी आप देखते हैं जब तक एण्टीना ठीक नहीं होता, तब तक चित्र, विचित्र प्रकार से हिलते हुये दिखाई देते हैं। ठीक उसी प्रकार से ही जब मन, बुद्धि स्थिरता से, उपयोग में विशुद्धि होगी तो हमें मूर्तियों की आकृतियों बिल्कुल ठीक साफ दिखाई देगी | जिस दिन आपको मूर्ति का ज्यों का त्यों रूप आपकी चन्द आँखों से हृदय कमल में विराजमान होगा तो समझ लेना कि आपने जीवन में बहुत बड़ी उपलब्धि कर ली। फिर तो हमें यही कहना पड़ेगा कि
दिल के आइने में है प्रभो! की तस्वीर | थोड़ी गर्दन झुका ली और देख ली ।।
इसी प्रकार से आप पहले अपने उपयोग को मंदिर जी में एक वेदी की एक मूर्ति से अपने चित्त को, बुद्धि को स्थिर करने का अभ्यास करें। पुनः मंदिर जी की हर वेदी एवं अन्य तीर्थ यात्राओं में बने मंदिरों की वेदियों, मूर्तियों को भी इसी तरह उपयोग में बाँध लें। जब भी आप टेन्शन में हों, कोई दर्द जोर कर रहा हो, अनिद्रा अर्थात् नींद नहीं आ रही हो। तब आप इन मंदिरों के दर्शन आँखें बन्द करके, ठीक उसी प्रकार से कीजिए, मानो कि हम स्वयं मंदिर जी में पहुँचकर साक्षात् प्रभो ! के दर्शन कर रहे हैं। इस प्रकार आप एक क्रमबद्ध तरीके से बचपन से लेकर अभी तक आपने जिस किसी शहर या तीर्थयात्राओं में जितने मंदिरों के दर्शन किये हां, उन्हें फिल्म की तरह दुहराते-देखते चले जायें। फिर देखें कि आपका टेन्शन, दर्द, अनिद्रा कहाँ चली गई?
इस प्रकार करने से एक बात और मुख्य रूप से हमारे जीवन के लिये लाभप्रद होती है। होगा कि यदि हमारा इस प्रकार से चिन्तन का अभ्यास बन गया तो जीवन के अन्त में समाधि के समय बहुत ही अधिक काम में आयेगा। जैसे कोई अन्त समय मरण की तैयारी कर रहा हो तो स्वयं अपने पूर्वाभ्यास के उपयोग को जाग्रत करें और दूसरों से करावें। स्वयं कहे, देखो, तुमने सम्मेद शिखर जी की यात्रा की है, चन्द्र प्रभु भगवान के ललितकूट के चरणों का ध्यान करो। पार्श्वनाथ भगवान के स्वर्णभद्र कूट के चरणों का ध्यान करो। यदि इसी ध्यान उपयोग