Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 42
________________ मन्दिर (४५) जिन बिम्बोपदेश करो!!] और अपने प्रभो! परमात्मा, ईश्वर, भगवान की आवाज को सुनो! तुम्हारा प्रभी तुम्हें पुकार रहा है। तुमसे कुछ कह रहा है । यदि तुम्हें उनकी आवाज सुनाई नहीं देती तो तुम उनकी ओर देखो, उनके स्वरूप को देखो! उनसे पूछो कि इस तरह हाथ पर हाथ रख पद्मासन में क्यों बैटे हो? निश्चल समपाद कायोत्सर्ग मुद्रा में क्यों खड़े हो? तुम्हें उत्तर मिलेगा, अवश्य मिलेगा, पूछोगे तो जरूर मिलेगा । वे कह रहे है कि जैन धर्म में अरिहन्तों की प्रतिमाएँ दो ही मुद्राओं में मिलती है-एक पद्मासन दूसरी खड़गासन । ये दोनों ही आसन योग मुद्रा के प्रतीक है यानि इन मुद्राओं से, इन महापुरुषों ने मन-वचन-काय का सम्यक् प्रकार से निरोध कर लिया है या इनने मन-वचन-काय की कुटिलता को जीत लिया है, ऐसा प्रतिभासित हो रहा है । इनके अलावा अन्य मुद्राओं से अंहकार, कषाय-राग-द्वेष आदि प्रतिभाषित होते हैं। कार प्रतिमा के पास रहोस गन का कृत्य कृत्यपना प्रकट हो रहा है। क्योंकि "संसार में सबसे बड़ा व्यक्ति वही है जिसे कुछ भी करना .. बाकी न रहा हो।" अर्थात जिन्हें अपने हाथों से कोई भी कार्य करना शेष नहीं रहा हो। आशीर्वाद और श्राप से भी जिनके हाथ दूर हैं। वे हमसे कह रहे हैं कि जिस करनी से हम भये, अरिहंत सिद्ध महान। वैसी करनी तुम करो, हम तुम एक समान ।। एक स्थान पर खड़गासन-कायोत्सर्ग मुद्रा होने से, जिनका संसार में परिभ्रमण करना याकी नहीं रहा, कायोत्सर्ग मुद्रा से इस बात का संकेत मिल रहा है, क्योंकि संसार में भ्रमण करने के लिए पैरों के सहारे चलना पड़ता है जिससे पैरों के साथ भी आगे पीछे हो जाते हैं । परन्तु इनकी स्थिर मुद्रा पाप-पुण्य रूप संसार परिभ्रमण की यात्रा को पार कर गये हैं, ऐसा संकेत मिल रहा है। इसके बाद थोड़ा ऊपर की ओर देखतं हैं, प्रतिमा में छाती (वक्ष) पर चार पांखुड़ी का एक फूल-सा बना है। यह फूल क्या है ? किस बात का प्रतिक है? सुनो! यह चिन्ह तीर्थंकरों के एक हजार आठ शुभ चिन्हों में से श्रीवत्स नाम का चिन्ह है। श्री का अर्थ है लक्ष्मी एवं वत्स का अर्थ है पुत्र अर्थात जिनको अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त सुख एवं अनन्तवीर्य सप अन्तरंग अनन्त चतुष्टय लक्ष्मी प्राप्ती हुई है एवं बहिरंग में भी समयशरण आवि लक्ष्मी से शोभायमान है, 'श्री वत्स' चिन्ह यानि लक्ष्मीपुत्र, नियम से तीर्थकरों के होता है। अरिहंतों के होने का नियम नहीं है। जैसे- भरत-बाहुबली की मूर्तियों पर श्रीवत्स चिन्ह नहीं होता। अतः इससे सिद्ध है कि श्रीवत्स चिन्ह तीर्थकरों के नियम से होता है। ___ इसके बाद थोड़े ऊपर की ओर देखने से लगता है, "अवि वीतरागी नगन मुद्रा 'दृष्टि नासा पै धरै।' मन्द मुस्कानयुक्त पुख, इसका अर्थ है कि जिनका हृदय कमल अन्तरंग ज्ञान

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