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मन्दिर
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जिन बिम्वोपदेश सौम्याः सर्व-विकार भाव-रहिताः, शान्ति स्वरूपात्मकाः । शुद्धध्यानमयाः प्रशान्त-बदंनाः श्री प्रातिहार्यान्विताः ।। स्वात्मानन्द विकाशकाश्च सुभगाश्चैतन्य भावावहाः | पञ्चानां परमेष्ठिनां हि कृतया, कुर्वन्तु ते मंगलम् ।।
जय बोलो पंच परमेष्ठी भगवान की.....
शारदे! शरद-सी शीतल.......
जय बोलो श्री द्वादशांग जिनवाणी माता की.... जय बोलो परम पूजा गुरुवर्य स्ाचार्य श्री धर्ममाएर जी महारान की...
जय बोलो अहिंसामयी विश्व धर्म की...... कल आपने सुना था अभिषेक, तिलक, परिक्रमा, प्रशस्ति, चिन्हकरण आदि के बारे में। आज आप सुनेगें कि जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा आपसे क्या कह रही है ? | जिन बिम्बोपदेश
आज के भौतिकवादी युग में व्यक्ति की ईश्वरीय आस्था बदल गई, लोगों ने आधुनिक धर्म के परिपालन हेतु घर में उसकी पूर्णतः व्यवस्था कर ली है। इसलिए कहना पड़ा कि
भौतिकता के युग का देखो धर्म कि कितना सुन्दर है।
टी. यी. घर का चैत्यालय है नगर सिनेमा मंदिर है।। यदि भूले से मंदिर जी आ भी गये तो भागते-भागते, पाँच-दस-पन्द्रह मिनट में दर्शन करके चल दिये, इसी में अपनी शान समझ ली और भगवान के ऊपर एहमान कि हे भगवन्! देख ले तू भी कि में इतने व्यस्त जीवन में भी तेरे दरबार में आता हूँ । लेकिन हम आपसे पूष्टना चाहते हैं कि आपने इतने समय में मंदिर आकर दर्शन करने में क्या उपलब्धि की? तब आप यही कह सकते हैं कि इतनी देर हमें शान्ति मिलती, जब तक हम मंदिर जी में रहते हैं। अब हम आपसे कहना चाहेंगे कि जो थोड़ी देर के लिये मिलती है, उसका नाम शान्ति नहीं है। शान्ति का स्वरूप तो जीवन में एक बार प्रगट हो गया तो स्थायी हो जाता है। यदि आपने थोड़ी देर के लिए शान्ति अनुभव पान भी लिया तो क्या? जो व्यक्ति चौबीसों घण्टे मानसिक पीड़ा-संकल्प-विकल्पों से गुजरता है, वह पीड़ा मंदिर जी में आकर थोड़ी बदली हुई लगेगी। लेकिन पाँच-दस-पंद्रह मिनट में तो कुछ भी नहीं हो सकता है, इतने समय में तो बाहर के संकल्पविकल्पों को भी विश्रान्ति नहीं मिल पाती और पुनः बाहर निकलते हो सकल्प-विकल्प तीव्रता