Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ मन्दिर (४४) जिन बिम्बोपदेश से शुरू हो जाते हैं। आपके घर में बिजली की पंखा चौबीसों घंटे चलता रहे तो उसका आर्मेचर गर्म हो ही जाता है। जब आप पंखा बंद करते हैं तो थोड़ी देर तक तो पंखा बिना करेंट के पूर्व संस्कार से घूमता रहेगा। लेकिन आर्मेचर को ठण्डा होने के लिए कम से कम घण्टे भर का समय तो अवश्य चाहिए। अब हम आपसे पूछना चाहते हैं कि जब हमारी बुद्धि-मन- विचार बीसों घंटे विषय कषायों में घूम रहे हैं, चक्कर लगा रहे हैं, उन्हीं से संस्कारित हो रहे हैं। तब क्या हमारे पांच-दस-पंद्रह मिनट के मंदिर आने मात्र से उन विकारों की, विकल्पों की समाप्ति हो सकती है? उन विकारों की समाप्ति के लिए, शुभ संस्कारों की जागृति के लिए कम से कम एक घंटे का समय हमें प्रतिदिन देना होगा। अन्यथा, जब हम भगवान के दर्शन कर रहे होंगे, माला जप रहे होंगे, तब हमें संसार के संकल्प-विकल्प ही सुनाई पड़ते हैं/दिखाई पड़े हैं। इसलिए अध्यात्म के अनुरागी अमृतचन्द्राचार्य जी ने जीवों के विकल्प समाप्ति हेतु निम्न कारिका कही विरम कि मपरेणाऽकार्य कोलारलेन, स्वय-मपि निभृतः सन् पश्य षण्मास मेकः । हृदय सरसि पुसः पुद्गलाद् मित्रधाम्नो, ननु कि- मनुपलब्धिः भाति किञ्चोपलब्धिः । । ३४ । । ( समयसार कलश) हे भव्य] विराम ले, विराम ले, पर के (विषय- कषायों) के कोलाहल से विराम लेकर, तू स्वयं अपने में स्थिर होकर छह महीने तक अपने स्वरूप को देखने का अभ्यास कर ऐसा करने से तुझे अपने हृदय सरोवर में पुद्गल तत्त्व से भिन्न, ज्ञान तेज से प्रकाशमान तेरी आत्मा तुझे दिखलाई पड़ेगी। यथार्थ में जहाँ हमारे आचार्य प्रभो आवाज दे रहे हैं कि तू छह महीने तक विषय कषायों के विकल्पों से विराम लेने की चेष्टा करते हुए अपने आप में स्थिर होने का पुरुषार्थ कर । यहाँ हमारे पास छह महीने क्या, छह घण्टे का भी समय नहीं है। छह घंटे क्या ? आधा घंटे का समय भी निराकुलतापूर्ण नहीं है अपने लिए, आत्मोत्थान के लिए। फिर हम आत्म कल्याण के लिए क्या कल्पना, साधना कर सकते हैं ? आज तक हमने मंदिर में आकर, प्रभो के सामने खड़े होकर भी, प्रभों की आवाज नहीं सुनी। परमात्मा के सामने खड़े होकर भी पापों की आवाज कोलाहल सुनाई दिया। जब तक हमें भगवान के सामने खड़े होकर भी विषय कषायों का कोलाहल - आवाजें सुनाई देती रहेंगी, तब तक हमारा मंदिर जी आना सार्थक नहीं होगा। अतः अब थोड़े समय के लिए संसार के इन विषय कषार्यो की आवाजों को, पापों के कोलाहल को सुनना बंद करो! बन्द करो || बन्द

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78