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मन्दिर
(४०)
प्रशस्तिकरण
इन्दादिक पदवी न चाहूँ, विषयों में नाहि लुभाऊँ।
रागादिक दोष हरीजै परमानम निज पद दीजै ।। अतः भगवान के सामने कभी तुच्छ भागां के भिखारी मत बनो । विराट सम्पदा के स्वामी बनो । भगवान के सामने भोगों के भिखारी बनकर मत आईये । वल्कि भोगों के त्यागी बनकर, उच्चकोटि के दाता बनकर जाईये, तभी देय-दर्शन का सही लाभ हो सकता है।
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प्रशास्तकरण
नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ने के बाद अपनी दृष्टि को श्री जिन प्रतिमा जी के चरणों में एकाग्र करके विचारना चाहिए कि जिन मूर्ति के श्री चरणों से दिव्य ज्योति रूप किरणें उत्पन्न । होकर, हमारे हृदय कमल को आकर छू रहीं हैं जिससे हमारा हृदय कमल विकसित हो रहा है, खिल रहा है। पुनः भगवान के आदर्श पवित्र जीवन सूत्रों को याद करो कि हे प्रभो। आपने पाँर्चा पापों को पूर्णतः त्यागकर इस परम पावन पद को प्राप्त किया है, आप धन्य हैं आदिआदि । पुनः दो-तीन बार उस मूर्ति को आप ऊपर से नीचे की ओर ध्यान से देखें नीचे आसन पीठिका पर प्रशस्ति खुदी है। ___लगभग ग्यारह-बारह सौ वर्ष पहले प्रतिमाओं पर प्रशस्ति-लेख नहीं खोदे जाते थे । मात्र यड़े-बड़े शिलाखण्डों पर गुफाओं में, दीवालों आदि पर शिला लेख उत्कीर्ण किये जाते थे । पुन: जिन प्रतिमाओं पर प्रशस्ति की पद्धति कब-कैसे प्रारम्भ हुई? इसका कोई शास्त्रोक्त उल्लेख नहीं मिलता । फिर भी चिन्तन करने पर निष्कर्ष निकलता है कि हजार वर्ष के लगभग दिगम्बर आचार्यों के संघ भेद जैसे- काष्ठा संघ, पुत्राट संघ, मथुरा संघ, द्राविड संघ आदि-आदि । अतः इन संघ भेदों के विवाद से बचने के लिए मूल संघ नाम से प्रशस्ति को प्रतिमा पर उत्कीर्ण किया जाने लगा। स्वस्ति श्री वीर निर्वाण सम्बत.....श्री कुन्दकुन्दाचार्याम्नाये मूल संघ सरस्वती गच्छे बलात्कार गणे......आदि सूर्यमंत्र प्रदाता आचार्य मुनि के साथ ही प्रतिष्ठाचार्य एवं मूर्ति निर्माता का नाम भी खुदा रहता है।
प्राचीन शिलालेखों के अनुसार जब जैन धर्म के दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दो भेद हुए तय, 'मूल संघ' दिगम्बर जैनों का हुआ। क्योंकि बारह वर्ष का अकाल पड़ने से दिगम्बर साधुओं में से ही श्वेताम्बरधारी बनें, अतः मूल संघ दिगम्बर धर्म का ही रहा । इसी मूल संघ की शुद्ध परम्परा को कुन्दकुन्दाचार्य देव ने सुरक्षित रखा, तभी से प्रशस्ति में कुन्दकुन्दाचार्य का नाम मूल संघ के साथ बहुमान हेतु उत्कीर्ण किया गया | 'सरस्वती गच्छे' का तात्पर्य है, सरस्वती यानि 'ज्ञान' गच्छ का मतलब है कि 'सात पीढ़ियाँ अर्थात जिनका ज्ञान सात पीढ़ियों से