Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 29
________________ (३२) मन्दिर छत्तारि दण्डक बल्कि क्षेत्रपालादि से क्षेत्र प्रवेश अनुमति के लिये ही किया जाता है। यदि हमनं 'निस्सही' में अशुभ विकल्प छोड़े हैं तो 'आस्सही' से क्या हम अशुभ विकल्प ग्रहण करेंगे? 'निस्सही' शब्द से ही हमारे साधर्मी बन्धु भी यदि दर्शन-पूजन-भक्ति करते हुए बीच में खड़े हों तो उन्हें भी संकेत मिल जाता है कि कोई दर्शनार्थी पीछे दर्शन करने आया है । वह भी आपको स्थान देगा/देना चाहिये । इसी के साथ पहले दर्शन हवामा नादि से बच जायेगा | क्योंकि मौन-पूर्वक पीछे से दर्शन करने से कभी-कभी आगे वाले पर उसकी परछाई पड़ने से वह भयभीत हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुये हमारे आचार्यों ने 'निस्सही' आदि शब्दों का विधान बनाया है | पुनः णमोकार मन्त्र, उसका माहात्म्य एवं चत्तारि दण्डक, इस प्रकार भक्ति-भावपूर्वक पढ़ना चाहिये। जैसेणमो अरिहंताण अरिहंतों को नमस्कार हो। णमो सिद्धाणं सिद्धों को नमस्कार हो। णमो आइरियाण- आचार्यों को नमरकार हो। णमो उवमायाण- उपाध्यायों को नमस्कार हो। णमो लोए-सब्व-साहूणं- लोक(विश्व) के सभी साधुओं को नमस्कार हो। एसो पञ्च णमोकारो, सव्य पावप्पण्णसणो । मंगलाणं च सन्चेसि, पढम हवइ मंगलं ।। पद्यानुवाद. यह पंधनमस्कार मंत्र, नाशता सब पापों को मंगलों में सबसे पहला, मंगल कहलाता हो । अर्थ- यह पंच नमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और संसार के सभी मंगलों में पहला मंगल है। तभी तो पुष्पदन्त भूतबल्ली आचार्य जी में षट्खण्डागम ग्रन्थ में मंगलाचरण के रूप में णमोकार मंत्र को लिखा है | (चत्तारि दण्डक । FEBhati चत्तारि मंगलंअरिहंता मंगलसिद्धा मंगलंसाहू मंगलंकेवलि पण्णसो धम्मो मंगलं मंगल चार होते हैं। अरिहंत मंगल हैं। सिद्ध मंगल हैं। साधु मंगल हैं। केवली (केवलज्ञानी) के द्वारा कहा गया धर्म मंगल हैं |

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