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मन्दिर
(२९)
स्तुति, मंदिर जी प्रवेश विधि
प्रभो! पतित पायन में अपायन, चरन आयो शरण जी। यों विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन-मरन जी।। तुम ना पिछान्या आन मान्या, देव विविध प्रकार जी। या बुद्धि सेती निज न जाग्यो, भ्रम गिण्यो हितकार जी।। भव विकट बन में करम वैरी, ज्ञान धन मेरो हर्यो। सब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्ट गति धरतो फिर्यो ।। धन घड़ी धन दियस यों ही, धन जनम मेरो भयो। अब भाग्य मेरो उदय आयो, दरश प्रभो! को लख लयो।। छवि वीतरागी नगन मुद्रा, दृष्टि नासा पै धौ । वसु प्रातिहार्य अनन्त गुणयुत, कोटि रवि छवि को हरै।। मिट गयो तिमिर मिथ्यात्व मेरो, उदय रवि आतम भयो । मो उर हरष ऐसो भयो, मनु रंक चिन्तामणि लयो ।। मैं हाथि जोड़ नयाय मस्तक, बीनऊँ तुव चरण जी । सर्वोत्कृष्ट बिलोकपति जिन, सुनहुँ तारण तरण जी।। जाधू नहीं सुरवास पुनि नर-राज परिजन साथ जी।
'बुध' जाचहूँ तुव भक्ति भव-भव दीजिये शिवनाथ जी ।। यह 'प्रभो! पतित पावन' हिन्दी की स्तुति है | इसे भी याद कर लेना और नयी-नयी विनती स्तुतियाँ भी याद करते रहना चाहिये । कम से कम सात दिन के लिये सात पाठ याद होनी चाहिये जिससे प्रतिदिन एक पाठ भक्ति-भाव पूर्वक अर्थ-वोध करते हुए पड़ सको ।
( मन्दिर जी प्रवेश विधि
मन्दिर जी में प्रवेश करते समय शुद्ध छने जल से पैर धोने चाहिये । यदि आप जूते, मोजे, चप्पल आदि पहनकर आये हों तो उन्हें यथास्थान ही उतार देना चाहिये । पुनः मन्दिर जी में घण्टा रहता है, उसे क्यों बजाते हैं? घंटा बजाते समय हमारे क्या भाव होने चाहिये? ये प्रश्न प्रायः मन में उठते अवश्य हैं किन्तु यधार्थ समाधान नहीं मिलने से मन कुण्ठित हो जाता है।
सुनो 1 घंटा 'मंगल थ्यनि' के प्रतीक रूप में बनाया जाता है । घंटे की ध्वनि सुनकर दूर