Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 24
________________ मन्दिर (२७) मन्दिर जी आते समय क्या करें? दशाध्याय परिच्छिन्ने तत्त्वार्थ पठते सति। फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनि पुंगवैः ।। अर्थात् तत्त्वार्थ सूत्र के दस अध्यायों का पाठ करने से एक उपवास का फल मिलता है, ऐसा मुनि श्रेष्ठों ने कहा है। आज के आधुनिक भौतिक युग में इस प्रकार के फल की चर्चा जब की जाती है, तो कुछ इसे प्रलोभन मानते हैं कि इस फल के लोभ से व्यक्ति मन्दिर आना, तीर्थयात्रा करना, सूत्रादि का पाठ करना आदि सीखें । परन्तु ऐसा है नहीं कि मात्र प्रलोभन हो, दिखावा हो और फल कुछ नहीं मिले। ___ हमारे पूर्वाचार्यों की दृष्टि बड़ी ही वैज्ञानिक-मनोवैज्ञानिक थी। उन्होंने एक विशुद्ध गणित निकाला | जैसे- पाँच किलो जल को एक किलो शक्कर से यथार्थ मीठा किया जा सकता है, तथा उतने ही जल को दो चम्मच सेकरीन डालकर मीठा किया जा सकता है। मिठास दोनों में बरायर हैं। लेकिन कहाँ एक किलो शक्कर और कहाँ दो चम्मच सेकरीन । ठीक उसी प्रकार से इतने करोड़ दिन के उपयास करके, व्यक्ति अपने जितने कर्मों की निर्जरा करके परिणाई की विशुद्धि प्राप्त करता है, उतने कर्मा की निर्जरा, परिणामों की विशुद्धि उसे एक दिन के मन्दिर जाने, शिखर जी की एक टोक की वन्दना करने एवं एक दिन के तत्त्वार्थ सूत्र के पाठ करने से हो सकती है/होती है। यदि भावात्मक तरीके से इन सब कार्यों को किया जाये तो इसके फल के बारे में कभी हमें शंका नहीं होनी चाहिये। मंदिर जी आते समय रास्ते में कोई भी स्तुति, स्तोत्र, पाठ, प्रार्थना आदि पढ़ते आना चाहिये। जैसे- दर्शन स्तुति, भक्तामर स्तोत्र, विनय पाठ, मेरी भावना, आलोचना पाठ, महावीराष्टक, मंगलाष्टक, गोमटेश स्तुति आदि, चाहे हिन्दी-संस्कृत-प्राकृत किसी भी भाषा में हो, उन्हें कंठस्थ करके ही पढ़ना चाहिये जिससे देव-दर्शन का माहात्म्य प्रगट होता है, उपयोग में स्थिरता आती है। इसी से परिणाम विशुद्ध होते हैं जो हमारे अशुभ कर्मों को नष्ट करने में समर्थ होते हैं। यहाँ संस्कृत का सरल देव दर्शन स्तोत्र बताया जा रहा है। इसे अवश्य ही कण्ठस्थ याद कर लेना चाहिये। यदि कोई पुस्तक पढ़ने योग्य है तो वह खरीदने योग्य भी है। • जवाहर लाल नेहरु ।

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