Book Title: Mandir
Author(s): Amitsagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ मन्दिर (२३) मन्दिर जी जाने से पूर्व क्या करें? गये थे, तब वे भी अपने घर से एक पोटली में चावल भेंट देने हेतु साथ ले गये थे। जव तिर्यञ्च जैसे साधनहीन प्राणी एवं गरीव सामान्य मनुष्य भी लोक व्यवहार में अपने पूज्यों के पास खाली हाथ नहीं जाते हैं | तब हम लोग साधन-सम्पन्न होते हुए भी तीन लोक के स्वामी के दर्शन करने खाली हाथ आते हैं। तो उस दर्शन का कोई फल हमें मिलने वाला नहीं है। "प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम अच्छी किस्म के १०० ग्राम चावल, दो-चार बादाम, सुपारी, लौंग, इलाइची, छुहारे, चिटके आदि मिलाकर प्रतिदिन बढ़ाना चाहिये। जब आप लोग प्रतिदिन व्यसनों- चाय, पान, जर्दा, सिगरेट आदि में पचासों रुपया खर्च कर देते हो, तब क्या श्री जिनेन्द्र देव को पांच रुपये की सामग्री भी श्रद्धा भाव से नहीं चढ़ा सकते हैं? माता-बहिनें भी व्यर्थ के फैशन में प्रतिदिन पचासों रुपये खर्च कर देती हैं, लेकिन भगवान को सामनी चढ़ाने में कंजूसी. करती हैं। घर से पूरी डिब्बी भरकर मन्दिर जी आती है, लेकिन थोड़ी-थोड़ी सामग्री चढ़ाकर बची हुई घर वापस ले जाती हैं। इस तरह एक दिन की भरी हुई डिव्धी चार-छह दिन तक चल जाती है। हम आपसे पूछना चाहते हैं कि यदि आपके घर कोई मेहमान मिठाई का भरा डिच्चा लाये और आपके सामने ही डिब्बे को खोलकर मिठाई को चार टुकड़े आपकं वर्तन में रख दे और बाकी अपने साथ ही वापस घर ले जाये तो आपको कैसा लगेगा? या आप किसी के घर मेहमान बनकर जायें और इस प्रकार करें तो दूसरों को कैसा लगगा? थोड़ी सांचने-विचारन का यात है कि आप लोग तीन लोक के स्वामी के सामने क्या करते हैं? ऐसा करने से हमें क्या फल मिलेगा? अतः हम अपने घर से सामग्री उतनी ही ले जायें जितनी हमें उस दिन मन्दिर जी में चढ़ानी है। यहुधा लोग एक प्रश्न यह भी करते हैं कि मन्दिर जी में अधिकांशतः चावल ही क्यों चढ़ाये जाते हैं? सुनो! चावल व्यक्ति के जीवन की खाद्य सामग्री का प्रमुख भोजन है। हर प्रान्त के गरीब-अमीर लोग इसका उपयोग खाने में करते हैं हमारे तीर्थंकरों के दीक्षा के उपरान्त अधिकांशतः क्षीरान (घायल की खीर) से ही पारणा हुए। हमारे भोजन के एक ग्रास का प्रमाण भी एक हजार चावलों से माना जाता है।" चावल से छिलका अलग होने पर उसमें पुनः अंकुरित होने की शक्ति नष्ट हो जाती है यानि जमीन में बोने से चावल उगता नहीं है । चावल सफेद होने से शुक्ल लेश्या का प्रतीक है। चावल के दाने में कोई जीव-जन्तु अपना घर नहीं बना सकता । अखण्ड (जो टूटे न हों) चावलों को अक्षत भी कहते हैं। उन्हें चढ़ाकर अक्षय पद की कामना करते हैं इत्यादि, कई कारणों से मन्दिर जी में घावल चढ़ाने का अधिक महत्त्व है। पुनः एक प्रश्न यह भी उठता है कि जब हमारे प्रभो! वीतरागी हैं, ना तो वे हमें कुछ

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