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मन्दिर
(२१)
मन्दिर जी जाने से पूर्व क्या करें?
मन्दिर जी में भगवान को निश्चित यही द्रव्य चढ़ाना चाहिये, ऐसा कोई नियम नहीं है। यह तो श्रद्धा-भक्ति-शक्ति के अनुसार ही द्रव्य चढ़ाया जा सकता है । इस विषय में पणित श्री सुदासुखदास जी ने 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' ग्रन्ध की टीका में निम्न रूप से लिखा है.
समस्त ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अपना-अपना सामर्थ्य, देशकाल के योग्य अनेक स्त्री, पुरुष, नपुंसक, धनाढ्य-निर्धन, सरोग निरोग जिनेन्द्र की आराधना करें हैं। कोई ग्राम निवासी हैं, कोई नगर निवासी हैं, कोई वन निवासी हैं, कोई अति छोटे ग्राम में वप्तने वाले हैं। जिनमें कोई तो अति उज्ज्वल अष्ट प्रकार की सामग्री बनाय पूजन के पाठ पढ़िकर पूजन करें हैं। कोई कोरा सृखा जव, गेहूँ, चना, मक्का, बाजरा, उड़द, मूंग, मोठ इत्यादि धान्य की मूठी ल्याय चदावे हैं। कोई रोटी चढ़ाएँ हैं, कोई राबड़ी चढ़ा है, कोई अपनी बाड़ी से पुष्प ल्याय चढ़ावें हैं, कोई दाल भात अनेक व्यञ्जन चढ़ावे हैं, कोई नाना प्रकार के घेवर, लाडू, पेड़ा, बरफी, पड़ा, पूवा इत्यादि चढ़ावं हैं। कोई वन्दना मात्र की करैं है, कोई स्तवन, कोई गीत-नृत्य-वादित्र ही करें हैं । ऐसे जैसा ज्ञान, जैसी संगति, जैसी सामर्थ्य, जैसी धन-सम्पदा, जैसी शक्ति, तिस प्रमाण देश काल के योग्य जिनेन्द्र का आराधक मनुष्य है। तें वीतराग का दर्शन, स्तवन, पूजन, बन्दना करि भावना के अनुकूल उत्तम, मध्यम, जधन्य पुण्य का उपार्जन कर हैं।'
कैवली के वा प्रतिमा के साग अनुराग करि उत्तम तस्तु धरने का दोष नाहिं । उनके विक्षिप्तता होती नाहिं । धर्मानुराग लें जीव का भला होय हैं। २
अतः हमें इस विषय में किसी से विवाद नहीं करना चाहिये कि मन्दिर जी में हम क्या चढ़ायें, क्या नहीं? बल्कि विवाद की जगह विवेक से काम लेना चाहिये। तभी हमें इस क्रिया का सही फल प्राप्त होगा। हमारी मुनि दीक्षा अजमेर राज०) में हुई। वहाँ पर लगातार पांच नसियाँ बनी हैं। पहली नसिया, जो सोनी जी की नसिया के नाम से प्रसिद्ध है । क्योंकि इसमें साने (स्वर्ण) की सुन्दर-सुन्दर रचनायें हैं। उन्हें देखने के लिये देशी-विदेशी, जैनी-अजैनी सभी लोग आते हैं । इसी नसिया जी में अनन्त चतुर्दशी एवं निर्वाण लाडू के दिन सोनी जी के परिवार से शुद्ध घर का बना नैवेद्य (च्यञ्जन-पकवान) आज भी चढ़ाया जाता है | बुन्देलखण्ड (म.प्र.) में कई स्थानों पर हमने विहार किया | महावीर जयन्ती पर अनन्त चतुर्दशी, निर्वाण लाडू पर पंचामृत अभिषेक एवं शुद्ध घर का या मन्दिर में ही बना नैवेध(व्यजन-पकवान) आज भी जैन मन्दिरों में चढ़ाया जाता है । इटावा (उ. प्र.) में चातुर्मास हुआ, वहाँ भी श्रावकों ने पंचामृत की
१. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पृष्ठ २०९-२१०, पं० सदासुखदास जी टीका-प्रकाशक श्री मध्य क्षेत्रीय
मुमुक्षु मंडल संघ, सागर (मध्यप्रदेश) से उद्धृत । २. पं० टोडरमल जी, मोक्षमार्ग प्रकाशक, अध्याय ५,पृ. २४१ ।