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मन्दिर
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मन्दिर जी जाने से पूर्व क्या करें?
मृल श्लोक में बताया गया है कि मानव जीवन की सफलता के लिये संसार में तीन अवलम्बनों की आवश्यकता है- लक्ष्मी यानि धन, सरस्वती यानि ज्ञान और गोविन्द यानि ईश्वर या धर्म | संसार अवस्था में इनमें से एक के बिना जीवन अधूरा हैं । ये तीनों लक्ष्यभूत अवलम्बन हमारे हाथ जो कि कर्म का प्रतीक हैं, इसमें निवास करते हैं, अर्थात् अपने हार्थों के द्वारा ही शुभाशुभ कार्य करके हम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं । इसलिये अपने हाथों को देखते हुए श्लोक में निसृत भावना को अपने हृदय में बिठाना चाहिये । भावना करना चाहिये कि मैं अपने जीवन में एक आदर्श व्यक्ति बनूं। मैं किसी के सहारे न रहकर अपने हाथों से परिश्रम करके धनोपार्जन से दरिद्रता को, विद्या-उपार्जन से मानसिक जड़ता-अज्ञानता को एवं प्रभो भक्ति से मोक्ष पद की सिद्धि करूँगा।
। मन्दिर जी जाने से पूर्व क्या करें?
इस प्रकार शुभ संकल्प करके दैनिक शौचादिक क्रियाओं से निपटकर, छने हुये जल से स्नान करना । नहाते समय शैम्पू या चर्बीयुक्त साबुन प्रयोग नहीं करना चाहिये । पुनः धुले हुए साधारण वस्त्र पहनकर मन्दिर जी आना चाहिये । क्योंकि यदि हम चमकील्ने-भड़कीले वस्त्र पहनकर मन्दिर जी आते हैं तो अन्य लोगों का मन, भगवान के दर्शन-पूजन-स्वाध्याय से हट जायेगा, जिससे हमें पापबन्ध होगा | वैसे प्राचीन समय की मन्दिर आदि आने की वेषभूषा, स्त्रीपुरुषों के लिये पीले या सफेद रंग की साड़ी-धोती-दुपट्टा था, जिससे व्यक्ति अपने आप में संयमित रहता था और धर्म-ध्यान में खूब मन लगता था। याद रहे कि हमें चमहे के बने बेल्ट, जूतेचप्पल, पर्स आदि का प्रयोग में नहीं लेनी चाहिये । क्योंकि जिस जानवर का चमड़ा होगा, उसी . जाति के समूर्च्छन जीव (बैक्टीरिया) हमारे शरीर के स्पर्श से उत्पन्न होकर मरते रहते हैं। माताबहिनों को अपने ओठों में लिपिस्टिक या नावनों में नेलपालिस नहीं लगाना चाहिये। क्योंकि ये दोनों यस्तुएँ जीवों के खून से निर्मित होती है सेन्ट आदि भी हिंसक तरीके से निर्मित होते है। अतः मन्दिर जी आते समय इनका भी प्रयोग नहीं करना चाहिए | ध्यान रहे कि हमारा मुख भी जूठा नहीं होना चाहिये, अर्थात् मुख में लौंग, इलाइची, सौंफ, सुपारी, तम्बाकू, गुटका, पान मसाला आदि नहीं होना चाहिये । मुख शुद्धि से हमारे पाठ या मन्त्रोच्चारण एवं शरीर की शुद्धि बनी रहती है एवं हमारे अन्दर पूज्यों का बहुमान एवं विनम्र गुण प्रगट होता है । ___हमें अपने घर से ही शक्त्यानुसार शुन्द मर्यादित जल-चन्दन, अक्षत पुष्म-नैवेद्य-दीप-धूप
और फलादि यथायोग्य अष्टद्रव्य थाली या डिबिया आदि में रखकर, ईर्यापथ यानि नीचे चार हाथ जमीन देखकर चलना चाहिये ।
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