Book Title: Mahavir Jivan Me
Author(s): Manakchand Katariya
Publisher: Veer N G P Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ महाप्रभु । साधु-समाज की यह हायरवारकी श्रेणिबद्धता गृहस्थो से किसी कदर कम नही है। मानो साधु-जीवन भी विश्वविद्यालय की डिग्री हो-प्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, पी एच डी । मुक्ति के कितने द्वार खोल लेने पर प्रथम श्रेणी की साधुता हाथ लगेगी, यह गणित अभी बाकी है। जो भी हो, साधु-परम्परा का मनुष्य कायल है। उसका दृढ विश्वास है कि मुक्ति-मार्ग की यह एक ऐसी मजिल है जिसे तय किये बिना आत्मधर्म सधेगा नही। पर सब तो सन्यास ले नही पाते, यह सौभाग्य कुछ को ही मिलता है। यहा मैं उस साधु-जमात की बात नहीं कर रहा जो महष वेशधारी साधु हैं। ऐसी जमात के लिए कबीर ने यह कहकर छुट्टी पायी कि 'भंड मुंडाये हरि मिल, सब कोई लेय मुंडाय । मैं उन कापालिको की भी बात नहीं कर रहा जो भूत-प्रेत जगा रहे है और नर-बलि व पशु-बलि मे मुक्ति ढंढ रहे हैं। उनका श्मशान-जागरण आत्म-प्रकाश से बहुत दूर है। मैं बात तपधारियो की कर रहा हूँ, जिन्होने गृहस्थ जीवन से अलग हटकर मुक्ति की राह मे साधुता स्वीकारी है। वे नि स्पृह, निराकुल, वीतरागी हैं । वे जितेन्द्रिय हैं और अपने ही राग-द्वेष, तृष्णा, मोह से लड रहे हैं । सब तरह का परीषह सहते हुए सम्यक तत्त्व की आराधना मे लगे हुए हैं। वे श्रद्धेय हैं, परम आदरणीय हैं, अपने-आप मे एक सस्थान हैं। उनके चरणो में शत्-शत् प्रणाम। दिशा भ्रम इस तरह महावीर के बाद, बुद्ध के बाद, ईसा के बाद-अपने-अपने अनेक आराध्य देवो के बाद मुक्ति की दिशा मे मनुष्य चलता ही रहा है । न जाने कितनी सीढ़िया अपने-अपने तीर्थों की वह चढ-उतर गया। शख-पर-शख उसने फँके, घटिया बजायी, प्रभु के चरणो में बैठ-बैठकर मालाएँ जपी, पवित्र मावन जल-धाराओ मे स्नान किया, साधु-सगत की, जीवन में? प .

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140