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कीजिए। इसका कोई एक मापदण्ड नहीं हो सकता, न ही ऊपर से लादा गया कानून मनुष्य को भीतर से माजता है। भीतर से तो वह तभी मजेगा, जबकि अपनी मर्यादा वह स्वय तय करेगा। लेकिन यह बात साफ है कि केवल आपकी काया से जुडा त्याग बहुत साथ नहीं देगा। वह हर वस्तु के उपभोग के साथ जुडना चाहिए, जिस धरती पर आप खडे है उसके साथ जुडना चाहिये, जिस समाज के बीच आप है उससे जुडना चाहिये। वह आपके पडोसी से जुडना चाहिये, मोहल्ले से जुडना चाहिये, गाव से जुडना चाहिये और सम्पूर्ण सृष्टि के प्राणी-जगत् से जुडना चाहिये । भोग मनुष्य को अपने साथ बहुत गहरी गुफा में घसीट ले गया है, जीवन की गरमी वहा पहुच नही रही है । वहा से लौटने का एक ही उपाय है कि भोग सेण्डविच बने । भोग पग है, उससे जीवन की ऊंचाईचढ़ी नहीं जाएगी। जीवन-शिखर तक पहुचने के लिए उसे त्याग की बैसाखिया चाहिये । जिस उच्च जीवन की आकाक्षा मनष्य लिये हए है और जिसे पाने के लिए उसने न जाने कितनी खोजे की है, श्रम किया है, कुरबानिया दी हैं, और हर कुरबानी का, हर त्याग का गीत गाया है, उस मानवोचित जीवन को पाने की मिनिमम (कम-से-कम) शर्त है-'त्याग, भोग,। इसके बिना मनुष्य को अपने जीवन का वह स्वाद हाथ नही लगने का जिसके लिए वह युगो-युगो से तरस रहा है।
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बीवन मे?
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