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hot गोलाई में आता हुआ देखते हैं। यह गति का खेल है। भारत में जब दिन है अमेरिका के लिए वह रात है, यह बदले हुए स्थान का करिश्मा है । पृथ्वी गोल है- आप इसके गोलार्द्ध में भारत में सीधे तनकर खड़े है तो आपसे ठीक विपरीत गोलार्द्ध पर मेक्सिको के आदमी को शीर्षासन करना चाहिये । पर गुरुत्वाकर्षण के कारण ऐसा नही होता । गुरुत्वाकर्षण तो द्रव्य का भार भी बदल देता है । चाद पर आदमी पहुचा तो वह हलकाफुलका हो गया । स्थान-भेद के कारण स्प्रिंग वाली तौलने की मशीन से वजन में अन्तर पड जाता है । गति के संदर्भ में हमारा साधारण गणित काम नही देता । हम जानते हैं कि रेल की गति से हमारी घडियों पर प्रभाव पडता है। स्टेशन की घडी से उसका मेल नहीं बैठता । हमारा गणित कहता है कि द्रुतगति रॉकेट से हम इस तारे पर ५० वर्ष में पहुचेगे, वही आइन्स्टीन की सापेक्षता वाला गणित कहता है कि उड़ते हुए रॉकेट मे समय भी सिकुडेगा और हमारा रॉकेट 30 वर्षों में ही तारे पर पहुच जाएगा। किसी ने शका की कि समय कैसे सिकुड़ता है ? उसका एक गणित है, फारमूला है । पर आइन्स्टीन ने हसते हसते यह बात दूसरे ही ढग से मनुष्य को समझायी । उन्होने कहा कि आपकी प्रियतमा के साथ आपका बीता हुआ एक सप्ताह बहुत छोटा लगता है और विरह का एक घण्टा युग के बराबर लगता है । हमारी अनुभूतिया हमे बतलाती है कि सत्य अनेकान्त के आलोक मे ही देखा जा सकता है ।
आइन्स्टीन ने अपने प्रयोगो से जब सापेक्षता का सिद्धान्त सिद्ध कर दिखाया तो विज्ञान की दुनिया ही बदल गयी । विज्ञान के हाथ में एक नयी ऊर्जा शक्ति आयी । चक्षु खुल गये और सत्य के नये पहलू सामने आते गये । मनुष्य स्पेस मे -अन्तरिक्ष मे दौड लगाने लगा । द्रव्यमान ऊर्जा में बदला जाने लगा । हमारी अणु-शक्ति की जड में आइन्स्टीन का यह सापेक्षता का सिद्धान्त बैठा हुआ है। विज्ञान के क्षेत्र में एक क्रान्ति हो गयी ।
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महावीर