Book Title: Mahavir Jivan Me
Author(s): Manakchand Katariya
Publisher: Veer N G P Samiti

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Page 128
________________ १७ सापेक्षता : अध्यात्म और विज्ञान विज्ञान के क्षेत्र मे आइस्टीन अपने सक्षम और सफल प्रयोगो के माध्यम से मनुष्य को उस बिन्दु पर ले गये, जिस पर महावीर पच्चीस सौ वर्ष पूर्व ले जाना चाहते थे। जिस सत्य का दर्शन मनुष्य कर रहा है, वह पूर्ण सत्य नहीं है । गुण, धर्म, काल, गति और सदर्भ-भेद के कारण वस्तु का कोई-नकोई पहलू मनुष्य की पकड से बाहर है । अब वह यह जिद करे कि उमने जो जाना है, समझा है वही परम सत्य है तो वह धोखे मे है । सदर्भ बदलता है, गति बदलती है, समय बदलता है, वस्तु के अलग-अलग गुण और धर्म उभर कर सामने आते है और सत्य के नये-नये पहल खुलते जाते है । जितना मैंने जाना वह भी सत्य है और जितना आपने जाना वह भी सत्य हो सकता है। अध्यात्म के क्षेत्र मे महावीर को यह अनभूति हुई और उन्होने अनेकान्त के आलोक मे सृष्टि को, वस्तुओ को, द्रव्य को देखा और समझा। अहिंसा के साधक के पैर मजबूत हुए । महिंसा एक जीवन-व्यवहार है और अनेकान्त एक दृष्टि है। इस दृष्टि के बिना अहिंसा टिकेगी नही, ११६ महावीर

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