Book Title: Mahavir Jivan Me
Author(s): Manakchand Katariya
Publisher: Veer N G P Samiti

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Page 131
________________ अध्यात्म की दृष्टि अध्यात्म के क्षेत्र में, चिन्तन के क्षेत्र में यही दृष्टि महावीर ने दी थी । सत्य की खोज मे 'ही' बहुत बाधक रहा है । मेरा यह आग्रह मुझे ही सत्य से दूर ले जाता है। हर मनुष्य के कुछ पूर्वापर विचार हैं, मान्यताएँ हैं, उसका दिमाग कडीशन्ड है - प्रतिबन्धित है । इसलिए सत्य का दूसरा पहलू उसे दिखायी नही देता । अत मनुष्य के जीवन में 'भी' की बहुत गुंजाइश है । हमारी कुछ आन्तरिक अवस्थाएं हैं। जानने और कहने में अभिव्यक्ति का अन्तर है । ज्यो-का-त्यो हम कह नही पाते। फिर जितना हम देखतेसमझते हैं वह एक पहलु है और उसी द्रव्य के कुछ और भी गुण-धर्म हो सकते हैं। समय और स्थान का अन्तर भी लगातार होता रहता है, इसलिए महावीर ने अभिव्यक्ति, स्थान, समय और गुण-धर्म के कारण वस्तु के अनेकान्त पहलू को समझा और वस्तु के प्रति मनुष्य को एकान्त दृष्टि को बदलने की कोशिश की । महावीर कहते हैं- " सत्य अनन्त-धर्मा है । पर एक दृष्टिकोण से उसके एक धर्म को देखकर शेष छिपे हुए धर्मों का खण्डन मत करो । एक ज्ञात धर्म को ही सत्य और शेष अज्ञात धर्मों को असत्य मत कहो । अपने विचार का आग्रह मत करो, दूसरे के विचारो को समझने का प्रयत्न करो । अपने विचार की प्रशंसा और दूसरे के विचार की निन्दा मत करो । " वस्तु के अनेक गुण, बदलती पर्याये, अनन्त धर्मिता और देखने वाले की सीमाएँ - इस चतुष्कोण के कारण जो देखा, परखा और व्यक्त किया जाता है वह पूर्ण सत्य नही है, अत मनुष्य को सत्य की खोज में हर समय अनेकान्त दृष्टि की जरूरत । महावीर की इस सापेक्षता ने महिला की राह पर चलने वाले मनुष्य को बहुत सहारा दिया है। उसे सहिष्णु बनाया है । मैं अपने विचार, अपनी मान्यता, अपना तरीका आप पर लादूँ इससे जीवन में ? ११९

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