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थाली एकदम साफ-सुथरी है। मेरी जमात के कुछ शाकाहारी तो इतना आगे बढे है कि दूध भी उन्होने मासाहार की सूची में डाल दिया है। मेरे नही करने की (डू नॉट्स) फेहरिश्त तो देखिए । अपने तन को मैंने कितना बचाया है । मानव-समाज मे हत्यारो को कोई इज्जत नहीं है। शिकार की आदत भी छूटती जा रही है। अहिंसा-धर्मी ने अपने व्यक्तिगत आचार-व्यवहार के बहुत कडे नियम साधे हैं।
लेकिन धरती का और मनुष्य की पूरी जमात का एक्सरे तो लीजिए। क्या कहते हैं ये एक्सरे ? धरती को विनाश के डेन्जर झोनखतरे के क्षेत्र मे घसीट लाने का पूरा कलक मनुष्य के माथे चढ गया है । और साथ ही अपनी जमात के हजार-हजार दुख उसने ही न्योते है । एक ओर, वह धरती का सबसे तीव्र हिंसक प्राणी साबित होता जा रहा है और दूसरी ओर, अपने आपसी व्यवहार मे वह मछली-वृत्ति का बन गया है। बड़ी मछली छोटी मछली को निगल रही है। आज के मनुष्य को न शेर से भय है, न भेडिये से। मनुष्य के सामने सबसे भयानक जानवर अब स्वय मनुष्य है। उत्तर खोजिए
ऐसा क्यो हो गया? हम तो प्यारपैदा करने चले थे। करुणा जगाने चले थे। सब जीवो से मैत्री जोडने चले थे। लेकिन हमारे हाथ क्रूरता से क्यो सन गये? मैं कदम यहा उठाता हूँ और हिंसा बहा भडक उठती है। अपने ही घर में बैठ-बैठे जाने क्या कर देता हूँ कि दूर बैठा इन्सान सौ-सौ बार काप जाता है। मेरा अस्तित्व टिकता है और उसका टूट जाता है। और जब उसका अस्तित्व रहता है तो मेरा टूटने लगता है। क्या हमारे अस्तित्व आपस-आपस मे एक-दूसरे के विरोधी हैं ? मानव शास्त्री (एन्थोपोलाजिस्ट) कहते है कि सबसे पहले मनुष्य ही 'अस्तित्व के लिए युद्ध (स्ट्रगल ऑफ एक्जिस्टेन्स)' से ऊपर उठा है। वह मानवता का जनक है। 'अस्तित्व के लिए युद्ध की नही, प्यार की जरूरत है-इसी अनुभूति
जीवन मे?
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