Book Title: Mahavir Jivan Me
Author(s): Manakchand Katariya
Publisher: Veer N G P Samiti

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Page 127
________________ से करुणा पहुचेगी, वहा से शतगुनी होकर लौटेगी। उधर से प्रेम की धारा इधर आयेगी और यहा महानद बनेगी। मैं अपना क्रोध लेकर उबल पडा हैं, पर आपकी क्षमा ने उसे टण्डा कर दिया है। निर्वर के आगे बेचारा वैर क्या करेगा? त्याग के सामने तृष्णा नही टिकेगी। मैं आपे से बाहर हूँ, पर आप सहिष्णु बन गये है। मनुष्य की ऊर्जा लेकिन अहिंसा-धर्मी ने अपनी ही ऊर्जा के इस क्षेत्र में कदम नही बढाये। वह सिर्फ अपने को बचाता रहा है । हिंसा नजर आयी तो दूर जाकर खड़ा हो गया है। अहिंसा कहती है--कदो । तुम अपना करुणासागर और प्रेम-सरोवर लेकर पहचोगे तो हिंसा बुझेगी। मनुष्य को हिसा का 'साइलेन्ट स्पेक्टेटर-मौन दर्शक' बने रहने से बचने के लिए महावीर ने उसे अनेकान्त दृष्टि दी। हमारी यह खुशनुमा धरती इतनी पीडित, इतनी दुखी, अशान्त और लाचार क्यो है ? इसकी तह मे उतरने के लिए अहिसा के पथिक को अनेकान्त का सहारा चाहिए। जब वह अपनी ही नजर से देखेगा तो उसे पीडा के कारण नहीं दिखायी देगे। पर जब वह दूसरो की नजर से देखेगा और उनके हृदय चोर का झाकेगा तो उसे वहा वे सब काटे दिखायो देगे जिन्होने सम्पूर्ण प्राणि-जगत् को छेद दिया है। ____ अहिमा का राही अपनी मजिल के जिस पडाव पर आज है, वह तो कंवल तलहटी है। आगे तो केवल आरोहण-ही-आरोहण है। नयी ऊर्जा के बिना मानव-जाति अहिसा की यह कठिन चढाई नही चढ सकेगी। और यह ऊर्जा कोई कार से बरसने वाली नहीं है। हमारा स्वधर्म सक्रिय होगा और जीवन के हर व्यवहार मे सक्रिय होगा तभी यह ऊर्जा हमारे हाथ लगेगी। ०० जीवन मे? ११५

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