Book Title: Mahavir Jivan Me
Author(s): Manakchand Katariya
Publisher: Veer N G P Samiti

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Page 104
________________ सब नेति नेति हैं । लेकिन मनुष्य का जीवन नकारात्मक नही है, वह पाजिटिव्ह - स्वीकारात्मक है । हमे तृष्णा की जगह अन्त्योदय, क्रोध की जगह करुणा, वैर के लिए क्षमा, अहकार के लिए नम्रता, यश-धन-सत्ता की fear की जगह त्याग, निन्दा के बदले गुण-दर्शन और स्वच्छता के बदले शुचिता - पवित्रता का अभ्यास करना होगा । ये सब नयी बाते नही है । मनुष्य को अपनी दुखती रगे मालूम है । और उनका इलाज भी उसे मालूम है । बहुत समृद्ध अध्यात्म उसके हाथ में है । उसी की पूजा के लिए वह अपने देवालयो मे जाता है । बडी निष्ठा और भावना से वह पूजा भक्ति कर रहा है, फिर भी रगे दुखती जाती हैं और अपने ही धर्म-क्षेत्र से मनुष्य भाग खडा हुआ है । बहुत चलचल कर भी मजिल से वह दूर जा रहा है । मैं बहुत नम्रता से यही कहना चाहता हूँ कि हम भटके बहुत हैं, चले बिलकुल नही । उलझे अधिक हैं, सुलझना चाहते ही नही । हमारी इस धारणा ने कि यह मंदिर - मसजिदगिरजाघर की चीज है, ससार त्याग कर गुफा - कन्दराओ की और सन्यासी की चीज है - हमे बहुत गुमराह किया है । लेकिन बात इससे बिलकुल अलग है । हम चाहे जिस धर्म के हो, वह हमारा धर्म, मनुष्य के जन्म से लेकर मरने तक हर घड़ी और हर पल के लिए है, और वह जहा है, जिस अवस्था में है, जिस परिस्थिति में है वहा के लिए है । बचपन खेल का, जवानी भोग की ओर बुढापा साधना का - ऐसा विभाजन है नही । धर्म देवालय मे और कर्म घर-बाजार में, ऐसा विभाजन भी नही है । यह जो हमने अपने-आपको बाट लिया है, वह हमारी सब से कमजोर कडी है । भक्ति, पूजा, निष्ठा, आराधना, अध्ययन, तत्व, चर्चा, सन्यास आदि मे अपने उच्चतम शिखर पर चढकर भी मनुष्य बौना है । उसकी ऊँचाई उसके आचरण में है । चले तो, जिस मजिल का राही है वहा तक अवश्य पहुँचेगा । ९२ महावीर

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