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सग-मर्मर निहाल हो गए-पता नही वे कहा जडे जाते, भक्तो के हाथ पड गये तो महावीर हो गये। ये इतने सारे नये महावीर अब अपनी-अपनी नयी वेदियो और मदिरो मे प्रतिष्ठित होकर विराज गये हैं। हम मदित है कि हमने फिर कुछ पराक्रम इस महापर्व मे कर डाला।
हमारी इस मन्दिर और मति-परम्परा से क्तिनी कात्म-साधना हुई और मनुष्य का प्रात्म-बल कितना ऊचा उठा, इसका कोई पैमाना हमारे पास नहीं है, लेकिन कुछ चीज हमारे हाथ सेत-मेत मे लग गयी है। हमारे सारे तीर्थ और बढिया मदिर सारे देश मे फैल गये हैं जो अनूठी कलाकृतियो से सज्जित है। प्रकृति के समृद्धतम सौन्दर्य के बीच स्थित ये तीर्थ मनुष्य को आकर्षित करते है और अपने ही खूटे से बधे रहने वाला यह प्राणी इस बहाने चरैवेति-चरैवेति कर रहा है। मदिरो ने हमे आराधना सिखाई है, भक्ति दी है, हमारे हृदय मे निष्ठा जगाई है। इस आस्था को बल मिला है कि अपने-अपने महाप्रभुओ की तरह वह भी अपने अन्तर में छिपी अनन्त शक्ति के द्वार खोल सकता है। प्रतिमाओ के चेहरो पर खिली राम की मर्यादा, कृष्ण का प्रेम, ईमा का बलिदान, बुद्ध की करुणा, शिव का तेज, ब्रह्मा की उदारता तथा महावीर की वीतरागता दिलो को छूती है। उनके समक्ष हम श्रद्धावनत है।
और ठीक यही वह पाइन्ट-बिन्दु है-जहा से हम तेज ढलान पर फिसल पडते हैं। जो करुणा हमारे दिलो मे जगनी चाहिए थी और करनी मे बहनी चाहिए थी वह हमने बुद्ध के ही पास रहने दी। जिस मर्यादा का सकल्प हममे जगना चाहिए था वह राम के सुपुर्द । जिस प्रेम से अभिभूत होकर हमे अपने आसपास के ससार में सेवारत होना चाहिए था वह कृष्ण को अर्पित । ईसा का बलिदान मूर्ति के पीछे बने क्रास को समर्पित। और जो वीतरागता हमारे हृदय मे फैलनी चाहिए थी, हमारे पूरे जीवन में छानी चाहिए थी वह सग-मर्मर के महावीर को सौपकर हम निश्चिन्त है । हमने अपने लिए राग पाल लिये हैं, वीतरागता की चिन्ता महावीर करेगे ।
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महावीर