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परिग्रह : मूर्ति का
धीरे-धीरे हमारे पास कई आदिनाथ, हजारो नेमिनाथ, एक-दो लाख पार्श्वनाथ और दस-बीस लाख महावीर एकत्र हो गए है । हमने बहुत भक्तिभाव से, निष्ठापूर्वक पावन - पवित्र समारोहो के बीच इन मूर्तियो की स्थापना की है । इनके लिए एक-से-एक बढिया मन्दिर रचे हैभव्य, कलापूर्ण और मन को मोह लेने वाले । प्रकृति की सुरम्य छबियो के बीच हमने सुन्दर उपवन, पहाड और जलाशयों के किनारे ढूंढे है, जहा अपनी सम्पूर्ण छटा लिये हमारे तीर्थ अपनी गरिमा के साथ सिर ऊंचा किये खड़े हैं । और हमारे ये आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर तथा और-और तीर्थंकर वहा विराजमान है ।
ऐसा पुण्य कोई अकेले हमारे ही हाथ नही लगा । अपने-अपने देवताओ की मनभावनी मूर्तिया - राम-सीता, कृष्ण-राधा, शिव-पार्वती, ब्रह्मा-विष्णु-महेश, बुद्ध, ईसा, गणेश, हनुमान आदि-आदि महाप्रभुओ की सजी-धजी प्रतिमाएँ लाखो मदिरो मे विराजमान हैं और हमारी धरती
महावीर
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