Book Title: Mahavir Jivan Me
Author(s): Manakchand Katariya
Publisher: Veer N G P Samiti

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Page 110
________________ पहले परिग्रह फिर अहिंसा ____ अहिंसा की तरह अपरिग्रह के क्षेत्र में भी मनुष्य सतह पर आ गया है। कर्म-क्षेत्र में ढेर सारी हिंसाएँ करता है और थाली में से कुछ चीजें अहिंसा के नाम से हटा देता है। इसी तरह ढेर सारा बटोरता है और अपरिग्रह या त्याग के नाम से कुछ मुट्ठी भर दे देता है। यह सतह। अहिंसा या सतही अपरिग्रह महावीर का रास्ता नहीं है। थोडी अहिंसा पाल ली और थोडा त्याग कर दिया, यह महावीर को स्वीकार नही है। महावीर ने मनुष्य के सामने टोटेल्टिी का-समग्रता का-धर्म रखा। उनकी अहिंसा टुकडो मे चलेगी ही नहीं। मनुप्य को अपना पूरा जीवन बदलना होगा बाहर से भी और भीतर से भी। अभी तो वह बहुत इतमीनान से बटोरने में लगा है। अपने भीतर उगमेवाली हिसाएँ और उसके प्रतिफल उसे दिखायी ही नही दे रहे है। कुछ समय वह धर्म के स्वर अलाप लेता है और शेष जीवन बेधडक शोषण की पटरियो पर दौडता जाता है । इसमे कुछ भी अटपटापन उसे नही लग रहा है । ____ अब इकॉलाजी (परिस्थिति-विज्ञान) ने खतरे की घटी बजाई है । जीवन-स्तर की बेतहाशा दौड में इन्सान ने प्रकृति को इतना दुहा है कि उसके सारे भडार ची बोल रहे है। मनुष्य के उपभोग का सामान प्रकृति से मिल पाएगा या नहीं, यह खतरा सामने है । आप महावीर की अहिंसा और अपरिग्रह को भूल जाइए, फिर भी जीवन के लिए प्रकृति, प्राणि-जगत् और मनुष्य के बीच गहरे विवेकशील सामजस्य की जरूरत है। हमे अपना उपभोग सीमित करना होगा। जितनी जरूरते हैं, उतना ही लेना होगा और बदले में प्रकृति को वह सब लौटाना होगा, जो उसे तोडे नहीं, बल्कि पुष्ट करे । हमने प्रकृति को वेशुमार जहरीली गैसे, गन्दगी, नाशक दवाइया, केमिकल्स, दूषित वायुमण्डल दिया है। यदि उपभोग की वस्तुएँ सीमित नही हुई और हमारे कल-कारखाने वे सब सामान उगलते रहे, जो एक ओर महावीर

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