Book Title: Mahavir Jivan Me
Author(s): Manakchand Katariya
Publisher: Veer N G P Samiti

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Page 106
________________ महावीर का बदा है यह, अति सादा, सरल, बेलगाव और बेदाग जीवन जीता होगा। पर यह वाटरमार्क उन्हें नहीं मिला। केवल ऊपर ऊपर चल रहे है ___ अब भले ही २५ शताब्दिया बीत गई हो, लेकिन महावीर के भक्त अहिंसा के रास्ते में बहुत ऊपर-ऊपर एकदम सतह पर चले है। अहिंसा का बेबोन-अपरिग्रह छुड़ा है। नही । इसलिए अहिंसा लिजलिजी बनी रही, जीवन को नही पकड सकी। अहिंसा का सम्बन्ध भीतर से अधिक है, बाहर से कम है। बाहर-बाहर आप बचते रहिए हिंसा सेन किसी को मारिए, न मासाहार करिए, बहुत शोध-शोध कर खाइए-पीजिए, झाड-फंक कर चलिए, पर भीतर तो हिंसा खिल-खेल रही है। जीवन भर मनुष्य कितनी-कितनं तृणा, कितना-क्तिना वैर, अहकार, लालसा, झूठ-कपट और कितनी-कितनी चोरी, कडुआ मिजाज, तीखे-पैने तेवर और आतक पालता चला जा रहा है। इसके सामने स्लॉटर हाउस (बूचडखाने) की हिंमा बहुत छोटी पडेगी। इसलिए महावीर का मारा ध्यान भीतर की हिसा पर था। वह कब उगती है, किस तरह पोषण पाती है, कितना मनुष्य को तोडती है और मजबूत हो-हो कर मनुष्य को मनप्य ही नही रहने देती-इस पर महावीर का चिन्तन चला और बहत खोजकर उन्होने भीतर की इस हिसा से लड़ने के लिए मनुष्य के हाथ मे 'अपरिग्रह' तत्त्व थमा दिया। बाहर की हिसा से बचने के लिए 'प्रेम' तत्व दिया और भीतर की हिसा को रोकने के लिए 'अपरिग्रह' तत्त्व दिया । कुछ कामयाबी मिली ह मनुष्य को बाहर की हिसा रोकने मे । एटम बम गिराकर भी माना उसने यही कि यह विनाश का रास्ता है, जो इसान का नहीं हो सकता। विनाशकारी शस्त्रो के पहाड मनुष्य ने खडे किए है, पर मानता यही है कि यह उसकी लाचारी ६, आकाक्षा नहीं है। उसे धरती पर प्रेम चाहिए। प्रेम की राह दिखाने वाले जित्ने-जितने मसीहा हए, वे भव उसके आराध्य देव है और उनकी प्रतिमाआ वे आगे वह बार . ४ महावीर

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