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छिपा जाते हैं। मनुष्य का यह बढिया उपकरण आपस मे एक-दूसरे का प्यार सजोने, सहयोग पाने, करुणा जगाने और सहृदयता ढूंढने के काम मे आने के बजाय एक-दूसरे को मार गिराने, नीचा दिखाने, रौब जमाने और मूर्ख बनाने के काम मे आ रहा है। वाणी मनुष्य को अशान्त बना रही है, हिंसा भडकाने में सहायक हो रही है और उसके सारे नीति वचनो और धर्मादेशो को झुठला रही है । अब मैं सूर, तुलसी, मीरा, कबीर, दान, रसखान आदि -आदि प्रभु-भक्तो के कितने ही भजन गाता रहूँ तो यह केवल मन बहलाव ही हुआ न वाणी की ऊर्जा-शक्ति तो मनुष्य को तोडने में ही खर्च हो रही है ।
अलग-अलग किस्म की भाषाओं और बोलियो के अलावा आदमी के पास ऐसी बोली भी है जो ध्वनि-रहित है, जिसे बिना बोले ही वह काम मे लेता है । और उसका इतना विकास हो चला है कि ज्यादा काम वह उसी से बनाने लगा है। यह बोली है तेवर की, नाराजी की, धौस की, पसन्दगी और ना पसन्दगी की। कुछ कहने, बोलने या लिखने की जरूरत नही । आखो के भौहो के, गर्दन के, चेहरे के सकेत ही पर्याप्त है। बिना जीभ चलाये बहुत कुछ कह देने का जादू । कुछ को तो इतना भी नही करना पडता । उनके मिजाज की ही इतनी शोहरत है कि जो चाहे वह होता जाता है । यह कम्बख्त ऐसी बोली है जो 'मास्टर की' की तरह सम्पूर्ण मनुष्य जाति को अपने में समेटे हुए है । आप कितनी भाषाएँ जानते होगे - दो या तीन | कुछ भाषा - वीर शायद सात-आठ भाषाएँ लिख-बोल लेने का दावा भी कर सकते है, फिर भी हजारो भाषाएँ वे नही जानते और उतनी सीमा तक अजनबी है । पर यह 'मास्टर की' भाषा जिसका सम्बन्ध तेवर से, मिजाज से है और मनुष्य के स्वार्थ से है वह सारे जगत् की एक ही है । इसने आदमी को बहुत तोडा है-खण्ड-खण्ड किया है । अन्याय और अत्याचारो के खिलाफ आज आदमी की जो बोलती बन्द है उसका सीधा सम्बन्ध इस 'मास्टर की भाषा' से है ।
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महावीर