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ताकत के कायल हो गये होगे। इतना-इतना चीख लेने पर भी मनुष्य को अपनी आवाज बडी धीमी लगी और उसने हर दस कदम पर ध्वनिविस्तारक यत्र लगा दिये हैं। आप नही सुनना चाहते, फिर भी सुनना पडेगा-हम बोल जो रहे हैं । और इस तरह मनुष्य की वाणी पृथ्वी से उठ कर आकाश तक छा गयी है, पृथ्वी-कक्ष को लाघ कर चाद को छू गयी है। यह अलग बात है कि आप जो कहना चाहते हैं वह कह नही पा रहे हैं और मैं जो सुनना चाहता हूँ वह सुन नहीं पा रहा हूँ। मुझ तक आपका स्पन्दन नही पहुचता और मेरा स्पन्दन आपको नहीं छूता ।
इस गोरखधन्धे मे वाणी का अपना कोई आकार ही नहीं रहा । वह पानी की तरह तरल बन गयी है । स्वच्छ बनती तो कोई बात थी, पर तरल बन गयी है। जब-जैसा आकार देना हो दे लीजिए। हमारी घर की बोली अलग है, दफ्तर की अलग है । किसी से काम निकालना है, तो वाणी मीठी। रौब दिखाना हो तो एकदम कर्कश । दीनो के साथ तूतकारा और सत्तावानो के साथ जी-हुजरी । व्यापार की वाणी धर्म की वाणी से एकदम जुदा। कोर्ट-कचहरी मे तर्क-ही-तर्क, ऐसा जो मुजरिम को बचा ले । राजनीति की वाणी गोल-मटोल, जिधर चाहो लुढका दो । इस तरह वाणी हृदय से टूट कर पारे की तरह बिखर गयी है हमारे चारों ओर छल-छल, कल-कल बह रही है। गुमराह हो गई ___ यह कोई नयी बात मैं नही कह रहा। यह एक ऐसा तथ्य है जिसे आपहम सब अच्छी तरह जानते हैं। हमारे शब्द निकम्मे हो गए हैं। मैं बोल रहा हूँ, आप सुन रहे हैं, पर भरोसा जाता रहा। वाणी तो एक-दूसरे को समझने के लिए हमने पायी थी। मैं आपके दिल में उतरूँ और आप मेरे दिल मे गोता लगायें, परन्तु बात एकदम उलट गयी । अपनी वाक्पटुता के कारण मैं आपसे छिप जाता हूँ और आप अपनी चतुराई से खुद को
जीवन में?