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चलो तो मंजिल आ जाए
इधर महावीर की २५ वी जन्म-शताब्दी को लेकर हमने अपने सब मदिर और तीर्थ झाड-पोछ लिये है, जीर्ण वेदिया फिर से तरो-ताजा हो गयी है और धर्म-ग्रथो पर नये बस्ते चढ गये हैं। हमारा उत्साह इससे भी आगे गया है और हमने धडाधड नयी वेदिया, नये मदिर और नये कलश पूरी सज-धज के साथ भक्तिभाव से समारोहपूर्वक स्थापित कर डाले हैं। कई पत्र-पत्रिकाये प्रकाशित हुई है, ग्रथ निकले है-महावीर को हम अपने बहुत पास ले आये है। फिर भी हम समझ रहे है कि हम उलझ गये हैं और जब-तब इस उलझन की चर्चा कर ही बैठते है। प्रश्नो की एक लम्बी कतार हमारे सामने है-उतर ढूंढते-ढूंढते भी कई नये प्रश्न उसमें जा खडे होते हैं। प्रश्न जिसका उत्तर चाहिए
प्रश्न धर्म के अज्ञान का नही है। प्रश्न धर्म की खोजो का भी नहीं है। प्रश्न यह भी नही है कि मनुष्य के कर्त्तव्य क्या है ? दुविधा इसमे भी नही
जीवन में?