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निकलना होगा और अडिग चट्टान की भांति उस हिंसा से जूझना होगा, जो मनुष्य को लील रही है। उस बैर से निपटना होगा, जो मनुष्य को खा रहा है। उस अहंकार से लोहा लेना होगा जिसने अपने आतक मे मानवता ही चौपट कर दी है । और तभी हम अपने महावीर का निर्वाण सार्थक कर सकेंगे, मुक्ति की सही मंजिल पा सकेंगे । oo
जीवन मे ?
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