Book Title: Mahavir Jivan Me
Author(s): Manakchand Katariya
Publisher: Veer N G P Samiti

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Page 46
________________ पाप किसे कहेगे? पाप को मनुष्य की इस चतुराई पर भी नाज है कि उसने कुछ बातें पाप की जमात से ही बाहर निकाल ली हैं और उन्हें व्यापार-व्यवसाय की कुशलता में शरीक कर लिया है। मिलावट करना अब कौन पाप है ? शोषण व्यापार का एक सफल तकनीक है, रिश्वत ले-देकर झठे काम बना लेना व्यापार-कुशलता है। नफाखोरी, सग्रहवृत्ति, महगाई, भ्रष्टाचारसब इसी कुशलता की मोहरे है। परिणाम जो हो, मनुष्य मरता हो तो मरे, पाप को मजा आ गया। वह खुले आम समाज पर छाया हुआ है, बल्कि सफलता की रौनक अपने चेहरे पर पोते हुए है। रह गये वे पाप जो चतुराई की जमात मे नही बैठते, उन्हें मनुष्य ने अपने हृदय में ही शरण दे दी है। ___एक और काम मनुष्य ने कर लिया है। उसे यह सतोष रहना चाहिए कि वह पानाचरण से बचने की साधना में लगा हआ है, अत उसने कुछ सतही पाप ढुंढ लिये हैं। एकदम सतह की बाते, जिनसे आप बच जाये तो अच्छा ही है, पर नही बच पाये तो कोई खास हानि नही होती-न आपकी, न समाज की। मनुष्य के अपने-अपने कुछ खाने-पीने के नियम है, व्रतउपवास की सीमाएँ है, देवी-देवताओ के पूजा-पाठ की विधिया है-कुछ ऐसी ही और निजी आचरण की बाते जिनका निभाव हो गया तो अच्छी बात है, पर नहीं हो पाया तो आप पाप मे पड गये, इसे जरा समझने की जरूरत है ! जिन आचरणो से समाज जीवन टूट रहा है, मनुष्य स्वय टूट रहा है, उसकी आत्मा डब रही है, उन्हें आप पाप की पक्ति मे बैठायेगे कि महज खाने-पीने, पहनने-ओढने वा पूजा-पाठ की विधियो को पापपुण्य की कसौटी पर चढायेंगे? आपने बढिया शोध कर खाया और अपनी व्यावसायिक कुशलता मे कुछ ऐसी मिलावट कर दी कि कई की जानें चली गयीं-लकोज-काड अभी आप नही भूले होगे, तो पाप किसमे समाया ३४ महावीर

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