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जीवन एक बन्द पुस्तक 1
चौंकिये नही, यह एक हकीकत है, एक ऐसी वास्तविकता, जिसे हम स्वीकारना नही चाहते। हम कहते तो यह है कि 'जीवन एक खुली पुस्तक हो', जिसे सब पढ सके । कोई दुराव - छिपाव नही, झूठ- फरेब नही - जो मैं हूँ उसे आप जाने । पर गाधी जैसे कुछ महापुरुषो को छोडकर मनुष्य ने रास्ता इससे ठीक उल्टा ले लिया है। उसकी जीवन-पुस्तक बन्द है, जिसे पढने से वह खुद भी कतरा रहा है । गाधीजी ने तो बहुत मजे मजे मे एक बालिका की हस्ताक्षर पोथी पर लिख दिया था कि- 'आमार जीवन आमार सदेश' - मेरा जीवन ही मेरा सदेश है, अर्थात् जो मैं करता हूँ वह बोलता हूँ, और जो बोलता हूँ वह करता हूँ । करनी और कथनी के अंतर को मिटा देने वाला वह एक सच्चा मनुष्य था । यो मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढी हजारो वर्षों तक सत्य का ही उपासक रहा है । कोई धर्म ऐसा नही जिसमे सत्य की उपासना न हो, कोई नीति - एथिक्स ऐसा नही जिसे सत्य के आसपास न गूंथा गया हो । यहां तक कि सब देशो मे कानूनो का सारा ताना
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महावीर