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चार उसकी पकड़ से बाहर है-मनुष्य ही उन्हें कर रहा है, देख रहा है, भुगत रहा है और उसने अपना समूचा जीवन मुसीबत-जदा बना लिया है, पर पाप उसकी पकड से बाहर है। मानो वह कोई कैंसर हो-फल-फैल कर उसने मनुष्य के रक्त की क्वालिटी (गुणात्मकता) ही बदल दी है ।
फिर भी अपनी हिकमत से, चतुराई और कुशलता के नाम पर मनुष्य कितनी ही ऊंची उडाने भर ले, एक न एक दिन उसे धरती पर ही अपने पैर रखने होगे। वह अपने ही भार से टूट रहा है। उसका हृदय खुद बगावत करेगा-पाप बेचारा कितने दिन वहां टिक सकता है ? पापाचरण कब तक समाज में व्यवहार-कुशलता का ढोग रचता रहेगा? झूठ-फरेब, धोखाधडी, शोषण, हत्या, डाकाजनी, क्रूरता, दुष्टता, भ्रष्टाचार और अन्याय मनुष्य के अलकार नही है, छिप-छिप कर धारण करते हुए भी मनुष्य स्वय इनसे कतरा रहा है । यह उसकी लाचारी है, पसन्दगी नही । पाप आज कितना ही प्रसन्न हो ले, कल उसे सिर छिपाने को जगह नहीं मिलेगी--केवल मनुष्य के करवट लेने की देर है । तब मनुष्य कहेगाबुरा देखो-सहन मत करो, बुरा सुनो-विरोध करो और बुरा कोई बोले तो चुनौती दो।
जीवन में?