Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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हुई किन्तु मैसूर प्रान्त में शीघ्र ही पुनः विजयनगरका हिंदू राज्य स्थापित होगया । इस वंशके नरेश यद्यपि हिंदू थे पर जैनधर्मकी ओर उनकी दृष्टि सहानुभूतिपूर्ण रहती थी । इसका बड़ा भारी 'प्रमाण कराया वह शिलालेख है जिसमें उनके बड़ी महदयता के साथ जैनियों और वैष्णवोंके बीच संधि स्थापित करनेका विवरण है | विजयनगर के हिन्दू नरेशोंके समय में राजघरानेके कुछ व्यक्तियोंने जैनधर्म स्वीकार किया था। उदाहरणार्थ- हरिहर द्वितीयके सेनापतिके एक पुत्र व 'उग' नामक एक राजकुमार जैनधर्माचलम्बी होगये थे ।
इस प्रकार विजयनगर राज्यके समय में जैनी लोग शांतिसे जैनियोंकी वर्तमान अय- अपना धर्म पालन कर सके किन्तु जैनधर्मके स्था और प्रस्तुत उस पूर्व राजसन्मान और व्यापकताका पुनपुस्तकका 'येय | रुद्धार न होसका । इस समय से जैनधर्मके 'अनुयायियों में उस अदम्य उत्साह, उस वीरता और धार्मिकता के मधुर सम्मिश्रण, उस साहित्यिक सामाजिक और राजकीय कर्मशीलताका भारी दास होना प्रारम्भ होगया जो अबतक चला जाता है। एक तो वैसे स्वार्थ त्यागी मुनियों का ही अभाव हो चला और जो थोड़े बहुत मुनि रहे भी उन्होंने धर्मके हेतु नरेशोंपर अपना प्रभाव जमाना छोड़ दिया। पांड्य, पल्लव और चोल प्रदेशों में अब भी जैनधर्म से सम्बन्ध रखनेवाले न जाने किनने ध्वंसावशेष विद्यमान हैं । मैमूर प्रान्तमें 'तो जगह२ बहुत अधिक संख्या में जैनमंदिर और मूर्तियां पाई जाती हैं। पुरातत्व रक्षणका राज्य द्वारा प्रबन्ध होनेसे पूर्व न जाने कितने मंन्दिरोंका मसाला व मूर्तियां आदि पुल, इमारतें आदि बनाने के