Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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'प्राबल्य बढ़ गया । मारसिंह के उत्तराधिकारी राचमल्ल हुए जिनके मंत्री चामुण्डरायने विन्ध्यगिरिपर श्रीबाहुबलिस्वामीकी वह उत्तरमुख खड्गासन विशाल मूर्ति स्थापित की जिसके दर्शन मात्रसे अब भी बड़े २ अहंकारियोंका गर्व खर्व होजाता है । चामुण्डरायनीने अपने बाहुबलसे अनेक युद्ध जीते थे और समरधुरन्धर, वीरमार्तण्ड, भुनविक्रम, बैरिकुलकालदंड, समरपरशुराम आदि उपाधियां प्राप्त की थीं । चामुण्डराय नी कवि भी थे। उन्होंने कनाड़ी भाषामें " चामुण्डराय पुराण' नामक ग्रन्थ भी रचा है जिसमें तीर्थंकरोंका जीवन चरित्र वर्णित है। ___ग्यारहवीं शताव्दिके प्रारम्भमें चोल नरेशों द्वारा गंगवंशकी होटसल नरेशोंका इतिश्री होगई और मैसूर प्रान्तमें होरसलवंशका
आश्रय । प्राबल्य बढ़ा। इस वंशकी प्रारंभिक उन्नतिमें भी एक नैन मुनिका हाथ था। इस राजवंशके समय में जैनियोंकी खूब ही उन्नति हुई निसका पता श्रवणबेलगोलके मंदिरों और शिलालेखोंसे चलता है ।* इस वंशके विनयादित्य द्वितीय जैनाचार्य शांतिदेवके शिष्य थे। एक लेखमें कहा गया है कि उन्होंने राज्य श्री इन्हीं आचार्यकी चरण सेवासे प्राप्त की थी। लेख में कहा गया है कि इस नरेशने इतने जैनमंदिरादि निर्माण कराये कि ईटोंके लिये जो भूमि खोदी गई वहां बड़े२ तालाव बन गये, जिन पर्वतोंसे पत्थर निकाला गया वे पृथ्वीके समतल होगए, जिन रास्तोंसे चूनेकी
:: श्रवणबेलगोलके मंदिरों, शिलालेखों व वहांके सविस्तर इतिहासके लिये देखो “माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमालामें प्रकाशित होनेवाला " जैन शिलालेख संग्रह "।