Book Title: Madras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Mulchand Kishandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
View full book text
________________
(१३) गाड़ियां निकलीं वे रास्ते गहरी घाटियां होगई इत्यादि । इनके पौत्र बिट्टिगदेव आदिमें पक्के जैनधर्मी थे किन्तु कुछ समयोपरान्त रामानुनाचार्यके प्रयत्नसे वे वैष्णव मतावलम्बी होगये तबसे उनका नाम विष्णुवर्द्धन पड़ गया। कहा जाता है कि इस धर्मपरिवर्तन के पश्चात उन्होंने जैनधर्मपर बड़े२ अत्याचार किये किन्तु श्रवणबेलगोलके लेखोंसे स्पष्ट ज्ञात होता है कि धर्मपरिवर्तनके पश्चात् भी जैनधर्मकी ओर उनकी सहानुभूति रही । उनकी रानी शान्तलदेवी आजन्म जन श्राविका रहीं और जिनमंदिर निर्माण कराती व दान देती रहीं। उनके मंत्री गंगराज तो उस समय जैनधर्मके एक भारी स्तम्भ ही थे । उन्होंने विष्णुवर्द्धनके राज्यकी आद्वितीय उन्नतिकी और अपनी सारी समृद्धि जैनधर्मके उत्थानमें व्यय की। गंगरानकी वीरता, धार्मिकता और दानशीलताका विवरण अनेक शिलालेखों में पाया जाता है । विष्णुबईनके पश्चात नरसिंह प्रथम राना हुए जिनके समयमें जैनधर्मकी उन्नतिका कार्य उनके मंत्री व भंडारी हुल्लपने किया। मैसूर प्रांतमें ये तीन पुरुष चामुण्डराय, गंगराज और हुल्लप जैनधर्मके चमकते हुए तारोंके सदृश हैं। इनके उपदेशपूर्ण जीवनचरित्र स्वतंत्ररूपसे संकलित कर प्रकाशित किये जाने योग्य हैं। इन्होंने ही गिरतीके समयमें मैसूर प्रांतमें जैनधर्मको ऊपर उठाया था।
होय्सल राज्यमें जैनधर्मकी अवस्था उन्नत रही। इस वंशका मसलमानोंका आक्रमण, राज्य १३२६ ईस्वी में मुसलमानों द्वारा समाप्त विजयनगरका हिन्दुराज्य होगया। मुपलमानोंके आक्रमणसे अन्य भार
और जनधर्म। तीय धर्मों के समान जैनधर्मको भी भारी क्षति
उप १२मानों
को भी