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कातन्त्रव्याकरणम्
(३।८।२४) से षकार को सकार, 'निमित्तापाये नैमित्तिकस्याप्यपायः' (का० परि० २७) के नियमानुसार ठकार को थकार, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से थ् को त् तथा “आकारादट औ" (३।५।४१) से औकारादेश । ____५. पफाल । फल + परोक्षा - अट् । 'जि फला विशरणे' (१।१६५) धातु से परोक्षासंज्ञक अट् प्रत्यय, द्विवचनादि, प्रकृत सूत्र से फ को प, तथा “अस्योपधाया दीर्घो वृद्धि मिनामिनिचट्सु" (३।६।५) से उपधासंज्ञक अकार को दीघदिश ।
६. जुघोष। घुष् + परोक्षा - अट् । 'घुषिर् विशब्दे' (१।२०५) धातु से परोक्षासंज्ञक अट् प्रत्यय, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से घ को ग्, “कवर्गस्य चवर्ग:" (३।३।१३) से ग् को ज् तथा "नामिनश्चोपधाया लघोः" (३।५।२) से उपधासंज्ञक उकार को गुणादेश ।
७. डुढौके। ढौक्+ ए । 'ढौकृ शब्दे' (१।३३२) धातु से परोक्षासंज्ञक 'ए' प्रत्यय, द्विर्वचनादि, "ह्रस्वः" (३।३।१५) से अभ्याससंज्ञक औकार को ह्रस्व = उ तथा प्रकृत सूत्र से द को ड् आदेश |
८. दथ्यौ। ध्या + परोक्षा - अट् । 'ध्यै चिन्तायाम्' (१।२७२) धातु से परोक्षासंज्ञक अट् प्रत्यय, “सन्ध्यक्षरान्तानामाकारोऽविकरणे" (३।४।२०) से ऐकार को आकार, द्विर्वचनादि, प्रकृत सूत्र से धकार को दकार तथा “आकारादट औ" (३।५।४१) से औकारादेश ।
९. बभार। भृ + परोक्षा - अट् । 'डु भृञ् धारणपोषणयोः' (२।८५) धातु से परोक्षासंज्ञक अट् प्रत्यय । द्विवचनादि, प्रकृत सूत्र से भकार को बकार तथा ऋकार को वृद्ध्यादेश - आर् || ५०८ ।
५०९. हो जः [३॥३॥१२] [सूत्रार्थ] अभ्याससंज्ञक हकार के स्थान में जकारादेश होता है ।। ५०९ । [दु० वृ०] अभ्यासहकारस्य जकारो भवति । जघान , जुहोति ।। ५०९ । [दु० टी०]
हो जः । ज इत्यकार उच्चारणार्थः । 'हकवर्गयोश्चवर्गः' इत्युक्ते हकारेण चतुर्थाः सवर्णा इति हकारस्य महाप्राणस्य घोषवतो नादवतश्च तादृशझकारोऽन्तरतमो भवत्येव, किन्तु शिक्षाश्रयणे प्रतिपत्तिगौरवं स्यात् ।।५०९।