Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 550
________________ पृ०सं० ३४९ १५६ २९ १३ ० 5 ० ० ० W ४६ ५०४ कातन्त्रव्याकरणम् क्र०सं० विशिष्टशब्दाः पृ०सं० क्र०सं० विशिष्टशब्दाः ४४८. रूढिदृष्टान्तः १२० | ४७८. वाक्यम् ३, १४१, २७७ ४४९. रूढिपक्षे | ४७९. वाक्यशेषः ४५०. रोगापनयनम् १२८ | ४८०. वाक्यार्थः ४, ९४, २९९, ४१० ४५१. रोमन्थाख्यं द्रव्यम् | ४८१. वाक्यावयवः ४५२. लक्षणवाक्यस्य | ४८२. वाक्यैकदेशेन ४५३. लक्षणवृत्तिः ४८३. वाक्यैकदेशोऽपि वाक्यम् ४५४. लक्षणा ४८४. वाचक: ४५५. लक्षणानि | ४८५. वाचकत्वम् ४५६. लक्षणापत्ते: | ४८६. वारणम् १०६ ४५७. लक्ष्यप्रधानत्वाल्लक्षणस्य | ४८७. वारणार्थता १०७ ४५८. लाघवम् १२४ ! ४८८. विकरणः २२, २३९, २४१ ४५९. लाघवोक्तिः ११८, १२७ | ४८९. विकरणस्य पूर्वाचार्य४६०. लाक्षणिकी वृत्तिः २०६ प्रसिद्धत्वात् २४० ४६१. लिङ्गार्थ: ५५ | ४९०. विकल्पितः ४६२. लिप्सा ४९१. विकार: ४६३. लेखकप्रमाद एव |४९२. विक्लित्तिः ४६४. लोकत एव द्विरुक्ति: |४९३. विक्लित्तिमात्रम् ४६५. लोकप्रसिद्धा संज्ञा |४९४. विचित्रा हि सूत्रस्य ४६६. लोकविवक्षा कृतिर्बोधजननी ४६७. लोकाश्रयणम् |४९५. विघ्नध्वंस: ४६८. लोकः ३, ६२, ६८, ११८, १९९ ४९६. विचक्षणा: ३२७ ४६९. लोके प्रसिद्धेयं संज्ञा | |४९७. वितर्क: ४७०. लोके हि व्युत्पादिताः ६९ ४९८. विधिपरित्यागः ४७१. लोकोपचार: ३५९, | ४९९. विध्यङ्गशेषभूता ११७, ११९ ४७२. लौकिकहेतुः | ५००. विप्रतिपत्तिः ४७३. वदनैकदेशे |५०१. विप्रतिषेधः ४७४. वर्तमानः | ५०२. विप्रतिषेधे परं कार्यम् ४७५. वर्तमानत्वम् ५०३. विभक्तिविपरिणाम: ४७६. वर्तमाना१, २१, ५५, ५९, ५०४. विभासज्ञा ८२, १०९, १२२ ५०५. विरोध: ४७७. वस्तुसत्ता ३०, ४१, ७६ | ५०६. विवक्षा १०१, १०२ २२ x २४७ ४० २९७ १४८ ४० १९

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