Book Title: Katantra Vyakaranam Part 03 Khand 01
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
View full book text
________________
४७८
कातन्त्रव्याकरणम्
पृ०सं०
३७
३२९ ।
३९३
१९५ | २
१९५ ।
२८
क्र०सं० शब्दरूपाणि
पृ०सं० | क्र०सं० शब्दरूपाणि २४०. तृष्णां छिन्धि ८८ | २७१. धीप्सति
४१७ २४१. ते पचन्ति
| २७२ धीयते २४२. ते पचन्ते २८ | २७३. धूपायति
१९८ २४३. तौ पचतः
| २७४. नन्दतु भवान् २४४. तौ पचेते
| २७५. नरीनृत्यते
४०१ २४५. त्वं ग्रामं गच्छेः
२७६. निजेगिल्यते
१९५ २४६. त्वचयति
| २७७. निनीषति
३५९ २४७. ददति
२७८. निरूपयति
१७२ २४८. दध्यौ ३५२ | २७९. नेनिज्यात्
३७५ २४९. दनीध्वस्यते
२८०. नेनेक्ति
३७५ २५०. दन्दश्यते
| २८१. पचति
५९, २८५ २५१. दन्दह्यते
| २८२. पचते
२८५ २५२. दयाञ्चके
| २८३. पच्यते ओदनेन स्वयमेव २७१ २५३. दरिद्रति
| २८४. पच्यते घट: २५४. दरिद्राञ्चकार
२०४ | २८५. पच्यन्ते घटा: २५५. दहति स्म त्रिपुरं हरः | २८६. पच्यते घटौ
२८ २५६. दिग्याते
| २८७. पटपटायते २५७. दिग्यिरे
| २८८. पटिमा
१८६ २५८. दिग्ये
|२८९. पटिष्ठः
१८५ २५९. दित्सति
|२९०. पटीयान् २६०. दीदांसते
|२९१. पणायति
१९८ २६१. दीयते
| २९२. पनायति
१९८ २६२. दीव्यति ५०, २४३, २९५ /२९३. पनीपत्यते
३९३ २६३. दुःखायते १६७ | २९४. पनीपद्यते
३९३ २६४. दुर्मनायते
१६७ | २९५. पपाच ___३११, ३२४, ३३६ २६५. देवदत्तमुपरमति
२१६ ।
| २९६. पफाल २६६. देहि
|२९७. पयस्यते
१६६, २७७ २६७. देहि मे भिक्षाम्
२९८. पयायते
१६६,२७ २६८. द्रढयति
| २९९. पराकरोति २६९. धित्सति ४१३ | ३००. परिपुच्छयते
१७२ २७०. धिप्सति ४१७ | ३०१. परिमृष्यति
२९६
६०
४१९
१६७
४१३
१८६
१३७
३५२
१८८
२९६

Page Navigation
1 ... 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564